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________________ ९७ कालिदास द्वारा प्रयुक्त कतिपय शब्दों को भी यथासम्भव व्याकरण द्वारा सिद्ध करने का प्रयत्न किया है, संभव न होने पर उन शब्दों के लिये 'चिन्त्यं' शब्द का प्रयोग किया है और सर्ग ७ पद्य २५ की टीका में 'असभ्यपाठः' शब्द से उल्लेख किया है। पाठान्तर-पाठभेद की दृष्टि से भी यह टीका महत्त्वपूर्ण है। पचासों पद्यों को 'क्षेपोऽयं, क्षेपकः' क्षेपक माना है और सैकड़ों पाठभेद देकर उनकी युक्तिसंगत व्याख्या की है, अर्थसंगत न होने पर 'चिन्त्यं' कहकर निरस्त भी किया है। टीकाकार ने व्याकरण का तो पद-पद पर खुलकर प्रयोग किया है। काशिका, न्यास, महाभाष्य, अष्टाध्यायी, परिभाषावृत्ति, चान्द्रव्याकरण, सिद्धहेमशब्दानुशासन, लिङ्गानुशासन, प्रक्रियाकौमुदी और कातन्त्र व्याकरण के सूत्रों का उल्लेख करते हुए प्रत्येक शब्दों को सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। उदाहरणार्थ सर्ग ३ पद्य ४ में आगत भोक्ष्यते' शब्द की व्याख्या देखिये : "यद्वा, भुजो भक्ष्ये इति कर्त्तव्येऽनवनग्रहणमुपभोगवृत्तावपि तथा स्यादिति रक्षकोक्तत्वात् साधुः। पुरुषोत्तमदेवस्त्वनवनमुपभोगमात्मसात्करणं वा व्याजहार, चन्द्रगोमी तु भुजो भक्ष्ये इत्येवास्तु सूत्रत्वात्तत्पक्षे चिन्त्यमेतत्॥" व्याख्या को प्रामाणिकता की कोटि में रखने हेतु टीकाकार ने इस टीका में लगभग ८० ग्रन्थों के नामोल्लेख करते हुए विपुल परिमाण में उद्धरण उद्धृत किये हैं। ग्रन्थों की तालिका अकारानुक्रम से इस प्रकार है : अनेकार्थसंग्रह टीका सह (हेमचन्द्रकृत), अनेकार्थतिलक, अभिधानचिन्तामणिनाममाला, अमरकोष, उणादिसूत्रवृत्ति, कण्ठाभरण, कन्दलीकार (न्यायकन्दली), कामतन्त्र, कामशास्त्र, कामन्दकः (कामन्दकीय नीतिसार), काव्यप्रकाश, कृष्णभट्ट, केशवस्वामी (कल्पद्रुमकोष), कैयट (महाभाष्यप्रदीप), कौटिल्य (अर्थशास्त्र), क्षीरतरंगिणी, क्षीरस्वामी (अमरकोष टीका), राजशास्त्रकार, गृह्यसूत्र, चन्द्रगोमि (चान्द्रव्याकरण), चाणक्य, जनार्दन (रघुवंश टीका), जिनेन्द्रबुद्धि (काशिकाविवरण पञ्जिका), ज्योतिषशास्त्र, त्रिलोचनदास ( ), दक्षिणावर्त ( ), दण्डी (काव्यादर्श), दन्तिल ( ), दुर्घटवृत्तिकार ( ), देवल ( ), धरणि ( ), दमयन्तीचम्पू, नाट्यालोचन, नैषधकाव्य, पराशर, परिभाषावृत्ति (पुरुषोत्तमदेवकृत), पालक ( ), पुराण, पौराणिका: टीकाकृतः (रघुवंशटीका) प्रक्रियाकौमुदी, प्रभाकर टीका, बालकाव्य, भगवद्गीता, भट्टिकाव्य, भरत (नाट्यशास्त्र), भविष्यपुराण, भारवि (किरातार्जुनीय काव्य), भोज (सरस्वतीकण्ठाभरण) मनुस्मृति, महाभाष्यकार (पातञ्जल महाभाष्य), याज्ञवल्क्यस्मृति, यादव ( ), रतिरहस्य, रामायण, रुद्र ( ), रुद्रट (काव्यालंकार), लघुस्तवविवरण, लिङ्गानुशासन टीका सह, वल्लभ (रघुवंश टीका), वाग्भटालंकार, वामन (काशिकावृत्ति), वामनपुराण, वासवदत्ता, विक्रम ( ), विश्वप्रकाश, विष्णुपुराण, वृत्तरत्नाकर, वृत्तिकार (रघुवंश टीका), वैजयन्तीकोष, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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