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________________ की प्रशस्तियों में दादा द्वय का बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ स्मरण किया है। साहित्य-सर्जन-गुणविनयजी जैनागम, जैन साहित्य, व्याकरण, साहित्य, कोश और लक्षण-शास्त्र के धुरन्धर एवं अप्रतिम विद्वान् थे। गच्छ और सामाचारी की चर्चाओं के प्रसंग में वादीभ पंचानन की तरह प्रामाणिक एवं तर्कपूर्ण सचोट उत्तर देने में सिद्धहस्त थे। प्राकृत, संस्कृत और राजस्थानी भाषा पर इनका एकाधिपत्य था। ये न केवल विद्वान् ही थे अपितु लेखिनी के भी धनी थे। इनका साहित्य-सर्जन काल १६४१ से १६७५ के मध्य का है। इस काल में इनके द्वारा सर्जित साहित्य विपुल परिमाण में आज भी प्राप्त है। इस साहित्य को हम ७ विभागों में बांट सकते हैं-१. संग्रह ग्रन्थ, २. अनेकार्थ साहित्य, ३. संस्कृत टीकायें, ४. राजस्थान गद्य में बालावबोध, ५. राजस्थानी पद्य में रासादि, ६. खण्डन-मण्डनात्मक ग्रन्थ और ७. स्फुट साहित्य। इनकी प्रतिभा अंकन करने हेतु केवल ग्रन्थों की सूची मात्र न देकर ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय देना आवश्यक है जिससे हम इनके व्यक्तित्व और कृतित्व का कुछ अनुमान कर सकें। सर्जित साहित्य का विभाग के अनुसार संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है १. संग्रह ग्रन्थ १. विचाररत्नसंग्रह-इसका प्रसिद्ध नाम 'हुण्डिका' है। इसमें आगमिक, प्राकरणिक, दार्शनिक, वैसंवादिक, पारम्परिक एवं सामाचारिक १०६५ प्रश्नों (अधिकारों) के उत्तर दिये गये हैं। इसकी शैली खण्डन-मण्डनात्मक न होकर विशुद्ध विचारात्मक शैली है। भाषा संस्कृत है। समय-समय पर हिसार, महिमपुर और जेसलमेर आदि के श्रीचन्द्र, मंत्रि देवा, सारणदास, सूजा, मेघा, उदयकर्ण, डूंगर आदि श्रावकों३९ ने प्रमोदमाणिक्यगणि, जयसोमोपाध्याय और इन से प्रश्न किये थे, उन प्रश्नों का संकलन कर इसमें उत्तर दिया गया है। अणहिलपुरपत्तन और जेसलमेर के प्रसिद्ध ज्ञान भण्डारों का अवलोकन कर उद्धरण दिये गये हैं। इस ग्रन्थ की पूर्णाहूति सं. १६५७ में सेरुणा नामक नगर में हुई है। इस ग्रन्थ का बीजक (विषय सूची) स्वयं गुणविनयजी द्वारा सं० १६५२४२ का लिखित प्राप्त है। इस बीजक में प्रश्नों को 'अधिकार' के नाम व्यवहृत किया है। ___ यहाँ यह प्रश्न विचारणीय है कि प्राप्त प्रशस्ति में रचना संवत् १६५७ (मुनिशररसशशिमाने) दिया है और बीजक में १६५२। इसका निर्णय प्राचीन प्रति को देखे बिना करना असंभव है। संभव है प्राचीन प्रति में 'मुनि' के स्थान पर अन्य संख्या वाचक शब्द हो। ___ इस ग्रन्थ में लगभग २३० ग्रन्थों के उद्धरण देते हुए प्रश्नों का समाधान किया गया है। ग्रन्थों की तालिका को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि गुणविनयजी ने जेसलमेर और पाटण भंडार का पूर्ण रूप से मंथन कर उद्धरण संग्रह निकाला हो! उद्धृत ग्रन्थों की अकारानुक्रम से तालिका निम्नलिखित है अनुत्तरोपपातिकदशासूत्र टीका सह, अनुयोगद्वारसूत्र चूर्णि-टीका सह, अन्तकृद्दशांगसूत्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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