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________________ पौषधमें संस्तारक रखनेका और प्रमार्जन के लिये उपकरण रखने का निर्देश किया है. ... कितनेक दिगंबर लोग यह कहते हैं कि हम मोरपीछी रखते हैं इससे प्रमार्जन करेंगे, किन्तु यह व्यर्थही है, क्यों कि पेश्तर तो गृहस्थलोग सामायिकमें पीछी रखते ही नहीं, यदि मान लिया जाय कि दिगंबरसाधुकी तरह दिगंबरगृहस्थलोग भी पछी रखेंगे तो यह भी प्रमार्जनके लिये उपयोगी नहीं होगा, क्योंकि शरीर और पैरके चोरस नापसे ज्यादा नापकी कोई चीज होवे तबही प्रमार्जनमें जीवदया होसके, याने रजोहरणादिउपकरण जिस प्रकार श्वेतांबरलोग रखते हैं वैसा रखनेका ही शास्त्रकारको सम्मत है. अतः यह शास्त्र श्वेतांबरआनायका ही है । .५(७) पाठकों ! दिगंबरोके हिसाबसे जो कोई साधु बीमार हो तो उसकी वैयावच्च दूसरा साधु नहीं कर सकता है, कारण कि न तो उनके साधुके पास पात्र रहता है कि जिससे वो ग्लानसाधुको आहार पानी या औषध लादे, और न वस्त्र कंबल आदि ही होते हैं कि जिससे वो ग्लानसाधुको संथारा ही कर दे, अथवा जाडेका बुखार हो तो उस बीमारको ओढनेको दे सके. आखिरकार उन लोगोंने यहां तक माना है कि गृहस्थोंमें ही पोष्यपोषकव्यवहार हो सके, साधुमें तो निर्गथपना होनेसे पोष्य-पोषकव्यवहार होता ही नहीं. ऐसी हालतमें बीमारकी हिफाजत करनेका कहां से माने १. अर्थात् इन लोगोंके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004064
Book TitleTattvartha Kartutatnmat Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagranandsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1936
Total Pages180
LanguageSanskrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size15 MB
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