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कारण कि पेश्तर तो प्रमार्जन करनेके साधनको ही उपकरण ही नहीं मानेंगे तो उपकरण कहांसे होगा? कि जिससे सामायिक, पौषधवाला प्रमार्जन करेगा। यदि कहा जाय कि श्रावकको सावधका या परिग्रहका सर्वथा त्याग, नहीं है. जिससे सामायिक पौषधवाला प्रमार्जनका साधन रख सकता है, किन्तु यह कहना भी उचित नहीं माना जाता. क्योंकि श्रावकको सामायिक, पौषधमें अनुमोदनकी प्रतिज्ञा नहीं है, परंतु सावंद्य एवं परिग्रहकी करणकारणविषयमें कुछभी छुट्टी नहीं है, तो फिर ऐसीस्थिति सामायिक, पौषध करनेवाले श्रावक उपकरणहीच नग्न ही होने चाहिये। यदि सामायिक, पौषधमें ऐसा. नगपना माना जाय तो सामायिकपौषधकी योग्यता तो दिगंबरलोग पुरुष और स्त्री दोनोंहीकों. मंजूर. करतही हैं, तो क्या स्त्रियां भी नग्न होकर सामायिक कर सकती हैं. यदि कहा जाय कि जिसको सामायिक, पौषध करना हो वह चाहे पुरुष हो या खी, नग्न होना ही चाहिये, तो फिर मानना ही पडेगा कि जब स्त्रियां बिना वनके ठहरं सकती हैं तो उन्हींको साधपना आने में क्या हर्ज है ? और जब साधपने में कोई हर्ज नहीं है तो फिर उनको केवलज्ञान और मोक्ष भी होने में क्या हर्ज है ? असल बात तो यह है कि ग्रंथकारमहाराजने वेतांबरही होनेसे संस्तारकको परिग्रह.न: माना और इसीलिये मजकके विविध त्रिविध त्यागी श्रावक श्राविकाको सामाजिक
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