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'रचे हुए दूसरे शास्त्र भी माने गये हैं । उन्हीं में से तत्वार्थ भाष्य में खुद आचार्य महाराजने ही 'स्वातितनयेन' ऐसा कहकर अपने पिताका नाम स्वाति है, ऐसा साफ जाहिर कर दिया है, और उसी स्थान पर अपनी 'माताका नाम उमा' था, ऐसा भी स्पष्ट अक्षरों में ही सूचित किया है. संभव भी है कि उमा नाम स्त्री वाचक होने से श्रीमान् की 'माता का नाम 'उमा' हो । मतलब यह कि आपका नाम आपके मातापिता के नामके संयोग से है । प्राचीन जमाने में यह कि माता या पिता के नामसे या नाम रखा जाता था । यह बात तो हुई व हिसाब से ग्रंथकार के नामकी बाबत, किन्तु दिगंबर लोग 'उमा' और 'स्वामी' शब्दसे कौन अर्थ लगाते हैं वह उनके तर्फसे अभी तक जाहिर में नहीं आया है । यदि कोई विद्वान इसविषयका खुलासा करेगा तो हमें हर्ष होगा ।
बात अक्सर होती भी थी दोनों के नामसे लडके का
जब तक इसका खुलासा न हो और नामपर ही विचार किया जाय तो उमानामकी कोई व्यक्ति हो, एवं उसके स्वामी याने नाथ होवे, और इससे श्रीमानको उमास्वामी कहा जाय, यह तो अच्छा नहीं मालूम होता, इसके सिवाय कोषकारोंने उमाशब्द जैसा पार्वतीका वाचक गिना है वैसा ही कीर्तिकी वाचक भी माना है। इससे उमा याने कीर्ति और स्वामी याने नायक, अर्थात् कीर्तिके नायक इन ग्रंथकारको मानकर
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