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__10.
धनुष
बाणों से नाक, कान आदि बींधना।
11. कुंभ
कुंभीपाक में पकाना।
12. बालुका
तपी हुई रेत में भुंजना।
13.
वैतरणी
उबलती हुई नदी में फेकना।
14.
खरस्वर
कांटे वाले वृक्षों से रगडना।
15. महाघोष
पशुओं के समान बाड़े में डालना।
इस तरह भयंकर छेदन भेदन आदि होने पर भी नारकी जीव मृत्यु को प्राप्त नहीं होते क्योंकि उनकी अनपवर्तनीय आयु होती है।
नारकी जीवों की स्थिति, गति, आगति तेष्वेक-त्रि-सप्त-दश-सप्तदश-द्वाविशंति-त्रयस्त्रिंशत्-सागरोपमाःसत्त्वानां परा स्थितिः ||6||
सूत्रार्थ : उन नारक जीवों की उत्कृष्ट आयु क्रमश: एक, तीन, सात, दस, सत्रह, बाईस और तैंतीस सागरोपम होती है।
विवेचन : प्रत्येक गति के जीवों की स्थिति (आयु मर्यादा) जघन्य और उत्कृष्ट दो प्रकार की है। जिससे कम न हो वह जघन्य और जिससे अधिक न हो वह उत्कृष्ट। प्रस्तुत सूत्र में उत्कृष्ट स्थिति ही बताई गई है। जघन्य स्थिति अध्याय चार के सूत्र 43/44 में बताई गई है जिसका विवेचन हम इसी के साथ कर लेते हैं।
स्थिति
नरक ।
जघन्य 10,000 वर्ष 1 सागरोपम 3 सागरोपम
उत्कृष्ट 1 सागरोपम 3 सागरोपम 7 सागरोपम