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________________ 7 सागरोपम । 10 सागरोपम 10 सागरोपम 17 सागरोपम 17 सागरोपम - 22 सागरोपम 22 सागरोपम | 33 सागरोपम यहाँ अधोलोक का वर्णन पूरा होता है। इसमें दो बाते विशेष जानने योग्य है - गति और आगति जीवों के उत्पन्न होने को आगति कहते हैं। आयु पूर्ण करके दूसरी गति में जन्म लेने को गति कहा जाता हैं। आगति असंज्ञी जीव मरने पर पहली नरक तक। भुजपरिसर्प (चूहा, नेवला आदि) - दूसरी नरक तक। खेचर (पक्षी) तीसरी नरक तक। स्थलचर (सिंह, अश्व आदि) चौथी नरक तक। उरपरिसर्प (सर्प आदि) पांचवी नरक तक। स्त्री - छठी नरक तक। मत्स्य और मनुष्य सातवीं तक जन्म ले सकते हैं। गति पहली से तीसरी तक तीर्थंकर पद को प्राप्त कर सकता है। पहली से चौथी - निर्वाण पद को प्राप्त कर सकता है। पहली से पांचवीं संयम पद को प्राप्त कर सकता है। पहली से छठी - देशविरति पद को प्राप्त कर सकता है। पहली से सातवीं सम्यक्त्व पद को प्राप्त कर सकता है। नरक से निकला जीव क्या नहीं होता है नारकी एकेन्द्रिय से असंज्ञी पंचेन्द्रिय इस प्रकार यहाँ तक नरक और नारकी जीवों का वर्णन समाप्त हुआ।
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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