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________________ उत्तरोत्तर कम है। प्रथम भूमि की मोटाई दूसरी भूमि की मोटाई तीसरी भूमि की मोटाई 1,80,000 योजन है 1,32,000 योजन है 1,28,000 योजन है चौथी भूमि की मोटाई 1,20,000 योजन है पांचवी भूमि की मोटाई 1, 18,000 योजन है छठी भूमि की मोटाई 1,16,000 योजन है सातवीं भूमि की मोटाई पाथडो में नरकावास है। इन नरकावासों की संख्या 30 लाख है, जिनमें नारक जीव रहते हैं। 1,08,000 योजन है आन्तरों में पहले दो आन्तरे रिक्त यानी खाली है और शेष 10 में भवनपति देवों के निवास है। दूसरी नरकभूमि से सातवीं नरकभूमि तक के सभी आन्तरे खाली है। सात नरक में आन्तरे, पाथड़े और नरकावास की संख्या इस प्रकार है : आन्तरे नरक 1 2 3 4 5 6 7 कुल 12 10 8 6 4 2 42 पाथडे 13 11 9 7 5 3 1 नरकावास 30 लाख 25 लाख 15 लाख 10 लाख 3 लाख 5 कम 1 लाख (99,995) 5 49 कुल 84,00,000 नरकावास नारकी जीवों का विशेष वर्णन नित्या - Sशुभतर- लेश्या - परिणाम देह-वेदना - विक्रियाः ||3|| सूत्रार्थ : नारकी जीव निरन्तर अशुभतर लेश्या, परिणाम, देह, वेदना और विक्रिया वाले होते हैं। 64 & Private Ose c
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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