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________________ आयुष्य के प्रकार और उनके स्वामी औपपातिक-चरमदेहोत्तम पुरूषा- Sसंख्येय- वर्षायुषोनपवर्त्यायुषः ||52|| सूत्रार्थ : उपपात जन्मवाले, चरमशरीरी, उत्तमदेहवाले और असंख्यात वर्ष की आयुवाले जीव अनपवर्तनीय आयुवाले होते हैं। विवेचन: प्रस्तुत सूत्र में स्वामी का वर्णन किया गया है। मनुष्य औपपातिक अर्थात उपपात जन्मवाले देवता और नारकी । चरम शरीर - उसी भव में मोक्ष जानेवाले। उत्तम पुरुष - तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, प्रतिवासुदेव आदि। असंख्यात वर्ष की आयुवाले : भोग भूमियों तथा अन्तरद्वीपों में निवास करनेवाले मनुष्य और तिर्यंच। इन सब जीवों की अनपर्वतनीय आयुष्य होती है। आयुष्य के प्रकार तथा उसके आयुष्य दो प्रकार होती हैं - a. अपवर्तनीय और b. अनपवर्तनीय 55 शस्त्र, a) अपवर्तनीय आयुष्य : जो आयु किसी विष, पानी, अग्नि आदि का निमित्त पाकर बन्धकालिन स्थिति के पूर्ण होने से पहले ही शीघ्र भोगी जा सके, वह अपवर्तनीय आयुष्य है। इसे अकाल मरण भी कहते हैं। $56 मनुष्य कर्म भूमि जिराफ 2115 कत्ता ह गाय अकर्म भूमि हाथी b) अनपवर्तनीय आयुष्य : जो आयु बन्धकालिन स्थिति के पूर्ण होने से पहले न भोगी जा सके वह अनपवर्तनीय आयु है। इसे काल मरण भी कहते हैं। मान लीजिए - एक तिनको का (तृणों का) ढ़ेर है, उसमें आग की एक चिंगारी छोड़ दी गई, वह धीरे-धीरे एक-एक तिनके को जला रही है और उसके चारों ओर तथा बीच में आग की लपट छोड़ दी गई तो तिनकों का पूरा ढेर कुछ ही क्षणों में जलकर समाप्त हो जायेगा ।
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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