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शुद्ध
नारक
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शुभ पुद्गल जन्य होने से
न देवाः ||51||
- सम्मूर्च्छिनो नपुंसकानि ||50||
सूत्रार्थ : नारकी और सम्मूर्च्छिम जीव नपुंसक ही होते हैं।
आहारक शरीर (संदेह का निराकरण करने लिए )
विशुद्ध
T
प्रशस्त उद्देश्य से बनाये जाने के कारण
नारक
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सूत्रार्थ : देव नपुंसक नहीं होते।
विवेचन : इस क्षेत्र में वेद या लिंग का स्पष्टीकरण किया गया है। लिंग का अर्थ है चिन्ह । यह तीन प्रकार का है - पुलिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसक लिंग ।
नपुंसक वेद
वेद के प्रकार
वेद का अर्थ है अभिलाषा विशेष या विषय भोग की अभिलाषा । वस्तुतः यह चारित्र मोहनीय कर्म का फल है। यह भी तीन प्रकार का हैं
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पुरूष वेद : स्त्री के साथ भोग करने की इच्छा।
स्त्री वेद : पुरूष के साथ भोग करने की इच्छा।
नपुंसक वेद : स्त्री-पुरूष दोनों के साथ भोग करने की इच्छा।
नारक और सम्मूर्च्छिम जीवों के नपुंसकवेद होता है। देवों के नपुंसक वेद नहीं होता, शेष दो वेद होते है। शेष सब अर्थात् गर्भज मनुष्यों एवं तिर्यंचों को तीनों वेद होते हैं।
अव्याघाती (बाधा रहित)
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किसी को न रोकता है और न किसी से रूकता है
देव
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स्त्री /
पुरूष वेद
वेद
( विषय भोग की अभिलाषी)
गर्भज
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तीनों वेद
55
मनुष्य
समुर्च्छिम
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नपुंसक
अधिकारी
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14 पूर्वधारी
पंचेन्द्रिय
1
तीनों वेद
तिर्यंच
एकेन्द्रिय चउरिन्द्रिय
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नपुंसक