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________________ द्रव्य मति-श्रुत सर्व द्रव्य कुछ पर्यायें पाँच ज्ञान के विषय - अवधि मन:पर्याय रूपी द्रव्य रूपी द्रव्य - कुछ पर्यायें अवधिज्ञान का अनन्तवां भाग केवल सर्व द्रव्य सर्व पर्यायें पर्याय एक जीव को एक साथ कितने ज्ञान संभव एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्ना चतुर्थ्यः ।।31|| सूत्रार्थ - एक साथ एक जीव को एक से लेकर चार ज्ञान विकल्प से अनियत रूप से हो सकते हैं। विवेचन - इस सूत्र में एक आत्मा में एक साथ कम से कम कितने और अधिक से अधिक कितने ज्ञान हो सकते हैं इस बात का निर्देश किया है। यदि 1 ज्ञान हो तो - केवलज्ञान यदि 2 ज्ञान हो तो - मति और श्रुतज्ञान यदि 3 ज्ञान हो तो - मति, श्रुत और अवधि या मति, श्रुत और मन:पर्यायज्ञान यदि 4 ज्ञान हो तो - मति, श्रुत, अवधि और मन:पर्यायज्ञान ____ पाँचों ज्ञान एक साथ किसी को नहीं हो सकते हैं, क्योंकि केवलज्ञान में चारों ज्ञान विलीन हो जाते हैं। मतिश्रुतावधयो विपर्ययश्च ||32|| सूत्रार्थ - मति, श्रुत और अवधि ये तीनों विपर्यय (अज्ञान रूप) भी हैं। विवेचन - मति ज्ञान, श्रुत ज्ञान और अवधि ज्ञान मिथ्या भी होते है और सम्यक् भी। मिथ्यादृष्टि जीव के मिथ्यादर्शन के साथ रहने के कारण इन ज्ञानों में मिथ्यात्व आ जाता है जैसे कड़वी तुंबड़ी में रखा हुआ दूध कडुआ हो जाता है उसी तरह मिथ्यादृष्टि रूप आधार दोष से ज्ञान में मिथ्यात्व आ जाता है। सम्यग्दर्शन के होते ही मत्यादि का मिथ्याज्ञान हटकर उनमें सम्यक् ज्ञान आ जाता है और मिथ्यादर्शन के उदय में ये - मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान और विभंगज्ञान हो जाते Jam Education International Por Personal & Frivate Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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