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विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अवधिज्ञान और मन:पर्यायज्ञान में अन्तर बताये हैं।
अवधिज्ञान कम विशुद्ध
विशुद्धि
मनःपर्यायज्ञान अधिक विशुद्ध मानुषोत्तर पर्वत पर्यन्त
क्षेत्र
अंगुल के असंख्यात वें भाग से लेकर संपूर्ण लोकाकाश तक। चारो गति के संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव को हो सकता है।
स्वामी
मनुष्य को ही होता है। मनुष्य में भी गर्भज-कर्मभूमि-पर्याप्त -सम्यग्दृष्टि-संयमी-अप्रमत्त -किसी ऋद्धि सम्पन्न को ही मन:पर्याय ज्ञान हो सकता है। अवधिज्ञान के विषय का अनंतवा भाग। (मन के विकल्प ज्यादा सूक्ष्म होते हैं)
विषय
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रूपी पदार्थ के कुछ पर्याय
यद्यपि अवधिज्ञान का अनन्तवां भाग मन:पर्याय का विषय होता है अत: अल्प विषय है फिर भी वह उस द्रव्य की बहुत पर्यायों को जानता है। जैसे बहुत शास्त्रों का थोड़ा थोड़ा परिचय रखनेवाले पल्लवग्राही पंडित से एक शास्त्र के यावत् सूक्ष्म अर्थो को तलस्पर्शी गंभीर व्याख्याओ से जाननेवाला प्रगाढ़ विद्धान् विशुद्धतर माना जाता है। उसी तरह मन:पर्याय भी सूक्ष्मग्राही होकर भी विशुद्धतर है।
पाँच ज्ञानों का विषय मतिश्रुतयोर्निबन्धः सर्व द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु ।।27||
सूत्रार्थ - मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का विषय सर्व द्रव्य होते हैं किन्तु उनकी सर्व पर्यायें नहीं। रूपिष्ववधेः ।।28।।
सूत्रार्थ - अवधिज्ञान का विषय सर्व पर्याय रहित केवल रूपी द्रव्य होते हैं। तदनन्तभागे मन:पर्यायस्य ||29।।
सूत्रार्थ - मन:पर्यायज्ञान का विषय अवधिज्ञान का अनंतवाँ भाग होता है। सर्व द्रव्य - पर्यायेषु केवलस्य ||30।।
सूत्रार्थ - सभी द्रव्य की सभी पर्यायें केवलज्ञान के विषय हैं।