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________________ विवेचन - प्रस्तुत सूत्रों में मनः पर्याय के भेद तथा ऋजुमति और विपुलमति की विशेषताएँ बताई गई है। 1. ऋजुमति मनःपर्यायज्ञान - ऋजु अर्थात् सरल। दूसरों के मनोगत भावों को सामान्य रूप से जानना ऋजुमति मनःपर्याय ज्ञान कहलाता है जैसे कोई व्यक्ति घट के बारे में चिंतन कर रहा है तो ऋजुमति मनः पर्यवज्ञानी यह तो जान लेता है अमुक व्यक्ति घट का चिंतन कर रहा है पर वह यह नहीं जाना पाता है कि घट का आकार क्या है, किस द्रव्य से बना हुआ है, मिट्टी का या सोने का आदि आदि । 2. विपुलमति - विपुल अर्थात् सरल और वक्र या सामान्य और विशेष । दूसरे के मनोगत भावों को सामान्य और विशेष रूप से जानना विपुलमति मन: पर्यायज्ञान कहलाता है। जैसे किसी घट के बारे में चिंतन किया तो विपुलमति मनः पर्यवज्ञानी केवल घट मात्र को नहीं जानेगा अपितु उसके देश, काल आदि अनेक पर्यायों को भी जान लेगा। जिस व्यक्ति ने जिस घट का चिंतन किया है वह सोने से बना हुआ है। राजस्थान में बना हुआ है आदि आदि । ऋजुमति, विपुलमति मन: पर्यायज्ञान में अन्तर विपुलमति 1. सरल व वक्र या सामान्य और विशेष सूक्ष्म ज्ञान 2. अधिक विशुद्धता होती है। 3. अप्रतिपाती है अर्थात् विलुप्त नहीं होता। 4. उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त कराता है। ऋजुमति 1. सरल या सामान्य स्थूल ज्ञान । 2. कम विशुद्धता होती है। 3. प्रतिपाती है अर्थात् आने के बाद विलुप्त हो सकता है। 4. उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त कराना ऐसा नियम नहीं है। 5. जघन्य से जीवों के दो तीन भवों को ग्रहण करता है उत्कृष्ट गति - आगति की अपेक्षा से सात आठ भवों का कथन कर सकता है। - 5. जघन्य सात आठ भव और उत्कृष्ट असंख्यात भवों का कथन कर सकता है। अवधिज्ञान और मनःपर्याय ज्ञान में अन्तर २. घट विशुद्धि क्षेत्र स्वामि विषयेभ्योऽवधि - मन: पर्यायोः ||26|| - सूत्रार्थ - विशुद्धि, क्षेत्र, स्वामी और विषय के द्वारा अवधि और मन: पर्यायज्ञान में अन्तर होता है। 21 Personer & Priva www.yahelibrary
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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