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________________ W-X प्रतिपातिक अवधिज्ञान भवप्रत्यय रहता है अर्थात् विनष्ट नहीं होता, वह अप्रतिपाति अवधिज्ञान है। जन्म से नारक और देव अनुगामी साथ-साथ चलता प्रकार परिणामों में अशुद्धता बढ़ती जाने पर अवधिज्ञान भी हीन होता जाता है। 5. प्रतिपाति अवधिज्ञान - जैसे तेल के समाप्त हो जाने पर दीपक प्रकाश देते-देते एकदम बुझ जाता है वैसे ही जो अवधिज्ञान प्राप्त होने के कुछ समय बाद एकदम लुप्त (नष्ट) हो जाता है वह प्रतिपाति अवधिज्ञान है। 6. अप्रतिपाति अवधिज्ञान जो अवधिज्ञान केवलज्ञान उत्पन्न होने तक अवधिज्ञान (आत्मा के द्वारा रूपी पदार्थों को जानने वाला ज्ञान) अनुगामी साथ साथ नही चलता ऋजुविपुलमती मनः पर्यायः ||24|| गुणप्रत्यय वर्धमान T बढ़ता हुआ विशुद्धय पतिपाताभ्यां तद्विशेषः ||25|| - हीयमान I घटता हुआ गुणप्रत्यय -20 अवधिज्ञानावरणीय क्षयोपशम से मनुष्य और तिर्यंच संज्ञी पंचेन्द्रिय प्रतिपाती मनपर्यायज्ञान के भेद और उनका अन्तर I एकदम नष्ट होना सूत्रार्थ - ऋजुमति और विपुलमति ये दो मन: पर्याय ज्ञान के भेद हैं। सूत्रार्थ - विशुद्धि और अप्रतिपाती की अपेक्षा से इन दोनों में अन्तर हैं। केवलज्ञानलोक अप्रतिपाती I केवलज्ञान तक रहना
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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