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___ 1. अनुगामी अवधिज्ञान - जो अवधिज्ञान अपने उत्पत्ति क्षेत्र को छोड़कर दूसरे स्थान पर चले जाने पर भी विद्यमान रहता है, जो एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में अथवा एक जन्म से दूसरे जन्म में
जाते समय अपने स्वामी के पीछे-पीछे अनुगमन करे उसे अनुगामी अवधिज्ञान कहते हैं। जैसे चलते हुए व्यक्ति के साथ नेत्र, सूर्य के साथ आतप धूप तथा चन्द्र के साथ चाँदनी रहती है, इसी तरह जो निरन्तर ज्ञानी के साथ-साथ रहे, वह अनुगामी अवधिज्ञान है।
2. अननुगामी अवधिज्ञान - जो अवधिज्ञान जिस क्षेत्र में उत्पन्न होता है, उसी स्थान पर स्थित होकर पदार्थ को देख सकता है, उस क्षेत्र को छोडकर अन्यत्र जाने पर साथ-साथ नहीं जाता वह अननगामी अवधिज्ञान कहलाता है। जैसे दीपक जहाँ स्थित हो वहीं से वह प्रकाश प्रदान करता है, पर किसी प्राणी के साथ नहीं चलता। वैसे यह अननुगामी अवधिज्ञान जहाँ उत्पन्न हुआ है वहीं रहकर जान सकता है अन्यत्र नहीं।
वर्द्धमान
3. वर्धमान अवधिज्ञान - जो अवधिज्ञान उत्पन्न होने के बाद बढ़ता रहता है वह वर्धमान अवधिज्ञान है। जैसे जैसे अग्नि में ईंधन डाला जाता है वैसे-वैसे वह अधिकाधिक प्रज्जवलित होती है तथा उसका प्रकाश भी बढता जाता है। इसी प्रकार ज्यों-ज्यों परिणामों में विशुद्धि बढ़ती जाती है त्यों-त्यों अवधिज्ञान के
माध्यम से देखे जा सकने वाले क्षेत्र और काल भी वृद्धि प्राप्त होते जाते हैं।
हीयमान
4. हीयमान अवधिज्ञान - जो अवधिज्ञान उत्पन्न होने के बाद घटता रहता है वह हीयमान अवधिज्ञान है। जिस प्रकार घी ईंधन आदि के अभाव में आग धीरे धीरे मंद पड़ जाती है। उसी
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