________________
प्रमाण (वस्तु तत्व को समग्र रूप से जानना)
परोक्ष इन्द्रिय और मन की सहायता से होनेवाला ज्ञान
प्रत्यक्ष आत्मा से सीधा होनेवाला ज्ञान
मति
अवधि
मन:पर्याय ।
केवल
उत
मतिज्ञान के अन्य पर्यायवाची नाम मति, स्मृतिः संज्ञा चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् ||13||
सूत्रार्थ - मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता, अभिनिबोध ये सब मतिज्ञान के पर्यायवाची नाम है, इनके अर्थ में कोई अन्तर नहीं है।
विवेचन - इस सूत्र में मतिज्ञान के पर्यायवाची नाम दिये गये हैं। यहाँ अर्थान्तर शब्द महत्वपूर्ण है। क्योंकि व्युत्पत्ति, धातु आदि तथा शब्द आदि नयों की अपेक्षा प्रत्येक शब्द में निहित वाच्यार्थ में कुछ न कुछ भेद तो होता ही है, इसी अपेक्षा से पर्यायवाची शब्दों के अर्थों में भी अन्तर होता है। किन्तु यहाँ अर्थान्तर शब्द द्वारा सभी अर्थ का निरसन करके, एकार्थता का सूचन किया गया है। फिर भी शब्दों के वाच्यार्थ की दृष्टि से इनके अर्थ इस प्रकार है -
1. मति - इन्द्रिय और मन से वर्तमान कालवर्ती पदार्थों को जानना। 2. स्मृति - स्मरण अनुभव में आये हुए पदार्थों का कालान्तर में पुनः ज्ञान पटल पर आना।
3. संज्ञा - संज्ञा को प्रत्यभिज्ञान भी कहते हैं। प्रत्यक्ष और स्मरण की सहायता से जो जोड रूप ज्ञान होता है उसे प्रत्यभिज्ञान कहते है। वर्तमान में किसी पदार्थ को देख अथवा जानकर यह वही है जो पहले देखा जाना था ऐसा जोड रूप ज्ञान होना। प्रत्याभिज्ञान स्मृति का स्वरूप जहाँ वह मनुष्य है, वहाँ प्रत्यभिज्ञान का स्वरूप “यह वही मनुष्य है। यह वही मनुष्य है इस वाक्य में यह मनुष्य इन्द्रिय प्रत्यक्ष है और वही स्मृति में है। इन दोनों का योग होने पर जो ज्ञान होता है वह प्रत्यभिज्ञान है।
4. चिन्ता - भावी वस्तु को विचारने का नाम चिन्ता है। 5. अभिनिबोध - वस्तु को ग्रहण करने वाला स्पष्ट बोध को अभिनिबोध कहते है।
FANARSFA0AUR
air
uideato international
or personer
vate uden
Hamjarinenitary.erges