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राप्रमापा
मन-पर्यवज्ञानमाया
सहायता के बिना सीधे आत्मा के द्वारा मात्र रूपी पदार्थो को जानने वाला ज्ञान अवधिज्ञान है।
4. मन:पर्यायज्ञान - मन:पर्यायज्ञान का अर्थ है - प्राणियों के मन के चिन्तित अर्थ को जानने वाला ज्ञान। अत: संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मनोगत भावों को जाननेवाला ज्ञान मन:पर्याय है।
5. केवलज्ञान - समस्त लोकालोक और तीनों काल (भूत, भविष्य, वर्तमान) के सभी पदार्थों को प्रत्यक्ष जानने वाला
कवल जान प्रमाण
ज्ञान केवलज्ञान है।
तत् प्रमाणे।।10।।
सूत्रार्थ - वह पाँचों प्रकार का ज्ञान दो प्रमाण रूप है। आद्ये परोक्षम् ||11||
सूत्रार्थ - प्रथम दो ज्ञान (मति और श्रुत) परोक्ष प्रमाण हैं। प्रत्यक्षमन्यत् ||12||
सूत्रार्थ - शेष तीन ज्ञान (अवधि, मन:पर्याय और केवल) प्रत्यक्ष प्रमाण रूप हैं।
विवेचन - प्रस्तुत तीनों सूत्रों में ज्ञान के प्रमाणत्व की चर्चा की गई है। बताया गया है कि वे पाँचों ही ज्ञान प्रमाण रूप हैं। प्रमाण का सामान्य लक्षण पहले ही बताया जा चुका है कि जो वस्तु को समग्र रूप से जानता है, वह प्रमाण है।
प्रमाण दो प्रकार का है 1. प्रत्यक्ष और 2. परोक्ष
प्रत्यक्ष प्रमाण - अक्ष का अर्थ है आत्मा | जो ज्ञान इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना सीधे आत्मा के द्वारा होता है वह प्रत्यक्ष है।
परोक्ष प्रमाण - जो ज्ञान इन्द्रिय और मन की सहायता से होता है वह परोक्ष है।
उक्त पाँच ज्ञान में से प्रथम दो (मति और श्रुत) ज्ञान परोक्ष प्रमाण हैं, क्योंकि वे इन्द्रिय और मन की सहायता से उत्पन्न होते हैं।
शेष तीनों - अवधि, मन:पर्याय और केवल ज्ञान प्रत्यक्ष हैं, क्योंकि वे सीधे आत्मा से उत्पन्न होते है।