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सम्यग्दर्शन आदि विषयों का ज्ञान
निर्देश स्वरूप
स्वामित्व अधिकारी
साधन कारण
अधिकरण आधार
स्थिति कालमर्यादा
विधान प्रकार या भेद
अंतरंगकारण
बाह्य कारण
औपशमिक क्षायोपशमिक दर्शन मोहनीय कर्म का
शास्त्रज्ञान उपशम, क्षयोपशम या क्षय
प्रतिमा दर्शन
सत्संग आदि सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शन कालान्तर भावाल्प बहुत्वैश्च ||8||
सूत्रार्थ - सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्पबहुत्व से भी सम्यग्दर्शन आदि विषयों का ज्ञान होता है।
विवेचन - 1. सत् - सत् का अभिप्राय सत्ता या अस्तित्व। यद्यपि सम्यक्त्व गुण सत्तारूप में सभी जीवों में विद्यमान है, पर अभिव्यक्ति केवल भव्य जीवों में ही हो सकती है, अभव्य में नहीं।
2. संख्या - अर्थात् गिनती। सम्यक्त्व की गिनती उसे प्राप्त करने वालों की संख्या पर निर्भर है। भूतकाल में अनंत जीवों ने सम्यक्त्व प्राप्त किया और भविष्य में भी अनंत जीव प्राप्त करेंगे, इस दृष्टि से सम्यग्दृष्टियों की संख्या अनंत है।
3. क्षेत्र - अर्थात् लोकाकाश। सम्यग्दर्शन का क्षेत्र पूरा लोकाकाश नहीं है किन्तु उसका असंख्यातवां भाग है।
4. स्पर्शन - निवास स्थान रूप आकाश और उसके चारों ओर के प्रदेशों को छूना स्पर्शन है। सम्यग्दर्शन का स्पर्शन क्षेत्र लोक का असंख्यातवां भाग है, किन्तु यह क्षेत्र की अपेक्षा बडा होता है। क्योंकि क्षेत्र में केवल आधार भूत आकाश ही आता है। जबकि स्पर्शन में जितने आकाश का आधेय (यहाँ सम्यग्दर्शन) स्पर्श करता है, उस सबको यहाँ सम्मिलित किया जाता है।
5. काल - अर्थात् समय। एक जीव की अपेक्षा से सम्यग्दर्शन का काल सादि सान्त या सादि अनंत होता है पर सब जीवों की अपेक्षा से अनादि अनंत समझना चाहिए। क्योंकि भूतकाल में ऐसा कोई समय नहीं था जब सम्यग्दर्शन का अस्तित्व न रहा हो। इसी तरह भविष्य में भी सम्यग्दर्शन रहेगा और वर्तमान में तो है ही।
___6. अन्तर - अर्थात् विरहकाल। विरहकाल अर्थात् सम्यक्त्व का अभाव। एक जीव की अपेक्षा सम्यग्दर्शन का विरहकाल जघन्य एक अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अपार्धपुद्गल परावर्तन जितना समय समझना चाहिए, क्योंकि एक बार सम्यक्त्व का वमन (नाश) हो जाने पर पुनः वह जल्दी से जल्दी अन्तर्मुहूर्त में प्राप्त हो सकता है। ऐसा न हुआ तो भी अन्त में अपार्धपुद्गल परावर्तन के बाद तो अवश्य प्राप्त होता ही है। किन्तु अनेक जीवों की अपेक्षा से विचार करे तो विरहकाल बिल्कुल नहीं होता क्योंकि नाना जीवों की अपेक्षा से सम्यग्दर्शन किसी न किसी को होता ही है।