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________________ ___4. भाव निक्षेप - सम्पूर्ण गुण युक्त पदार्थ या व्यक्ति को उस रूप में मानना अर्थात् जिस स्थिति में वस्तु वर्तमान में विद्यमान है, उसे वैसा ही कहना भाव निक्षेप कहलाता है। यह वर्तमान पर्याय को तथा गुण सम्पन्न को महत्व देता है। अतीत और अनागत पर्याय को स्वीकार नहीं करता है। जैसे अनंत चतुष्टय युक्त अंतिम तीर्थंकर को भगवान महावीर कहना अथवा वर्तमान में सिंहासनारूढ होकर राज्य का संचालन कर रहा हो, वही भाव निक्षेप से राजा निक्षेप (शब्द के अर्थ का निश्चय करना) है। नाम स्थापना द्रव्य भाव स्वरूप व्यक्ति का गुण आदि पर विचार किये बिना नाम रखना | व्यक्ति या वस्तु की चित्र या मूर्ति में | उस मूलभूत वस्तु का आरोपण करना भूत या भविष्यकालीन सम्पूर्ण गुण युक्त अवस्था को वर्तमान पदार्थ को उस | में भी उसी नाम से रूप में मानना | पहचानना। उदाहरण वीरता न होने | पर भी महावीर नाम रखना। भगवान महावीर स्वामी राजकुमार वर्द्धमान की प्रतिमा को को भगवान महावीर | महावीर स्वामी कहना। कहना। अनंत चतुष्टय युक्त महावीर को भगवान महावीर कहना। तत्त्वों को जानने के उपाय प्रमाणनयैरधिगमः ||6|| सूत्रार्थ - प्रमाण और नय से पदार्थो का ज्ञान होता है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में तत्त्वादि को जानने के दो साधन बताये गये हैं - प्रमाण और नय। प्रमाण और नय का अन्तर - प्रमाण और नय से तत्त्वों का बोध होता है। दोनों ही ज्ञान है, परन्तु दोनों में अन्तर यह है कि प्रमाण के द्वारा पदार्थ को समग्र रूप से एक साथ जाना जाता है जबकि नय पदार्थ में विद्यमान गुणों में से एक समय में एक ही गुण अंश को जानने की पद्धति है। प्रमाण वस्तु के पूर्णरूप को ग्रहण करता है और नय, प्रमाण द्वारा ग्रहीत वस्तु के एक अंश को जानता है। अत: किसी एक धर्म के द्वारा वस्तु का निश्चय करना जैसे नित्यत्व धर्म द्वारा आत्मा नित्य है' ऐसा निश्चय करना नय है। अनेक धर्मों द्वारा वस्तु का अनेक रूप से निश्चय करना। जैसे नित्यत्व, अनित्यत्व आदि धर्मो द्वारा आत्मा नित्यानित्य आदि अनेक रूप हैं ऐसा निश्चय करना प्रमाण है। दूसरे शब्दों में नय प्रमाण का एक अंश मात्र है और प्रमाण अनेक नयों का समूह है।
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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