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महावीर
1. नाम निक्षेप - किसी पदार्थ या व्यक्ति का गुण आदि पर विचार किये बिना लोक व्यवहार चलाने के लिए स्वेच्छा से नाम रख देना नाम निक्षेप है। इस नामकरण की प्रक्रिया में न तो नाम के अनुरूप गुणों का विचार किया जाता है
और न ही उसके लोक प्रचलित अर्थ का। यह तो केवल किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, काल, घटना आदि की पहचान के लिए रखा जाता है। जैसे किसी का नाम महावीर रख देना किन्तु उसमें महावीर के गुण नहीं है। वह तो कायर और
निर्बल है। यह नाम को लोक व्यवहार में उसे जानने के लिए सकेंतात्मक है। 2. स्थापना निक्षेप - जिस निक्षेप में किसी व्यक्ति या वस्तु की प्रतिकृति, चित्र या मूर्ति में उस मूलभूत वस्तु का आरोपण कर उसे उस नाम से अभिहित करना स्थापना निक्षेप है। जैसे भगवान महावीरस्वामी की प्रतिमा को महावीर स्वामी कहना, गाय की आकृति के खिलौने को गाय कहना, या नाटक में राम, रावण आदि के अभिनय करने वाले पात्रों को राम आदि कहना। स्थापना निक्षेप के दो भेद है - a) तदाकार स्थापना और b) अतदाकार स्थापना । इन्हें सद्भाव
स्थापना और असद्भाव स्थापना भी कहते हैं। a) तदाकार स्थापना - मूल वस्तु की आकृति जैसी है, वैसी ही आकृति वाली वस्तु में उस मूल वस्तु का आरोपण करना, तदाकार स्थापना है। जैसे अपने गुरू के चित्र को गुरू मानना। b) अतदाकार स्थापना - जो वस्तु अपनी मूल वस्तु की
प्रतिकृति तो नहीं है, फिर भी उसमें मूल वस्तु का आरोपण करना अतदाकार स्थापना है। जैसे - स्थापनाचार्य आदि में अपने गुरू का आरोपण करना या शतरंज की मोहरों को हाथी, घोडा, राजा आदि कहना।
श्रोता को चाहिए कि वह न तो स्थापना को मूल वस्तु मानने की भूल करे और न स्थापना निक्षेप का सर्वथा निषेध करे। सही श्रोता मूल वस्तु को समझने के लिए स्थापना निक्षेप को साधन के रूप में प्रयोग करे।
3. द्रव्य निक्षेप - वस्तु की भूतकालिन अथवा भविष्यकालीन अवस्था को वर्तमान में भी उसी नाम से पहचानना द्रव्य निक्षेप है। जैसे - पहले कभी राजा या मंत्री रहे हुए व्यक्ति को वर्तमान में राजा या मंत्री कहना। यह भूतकालीन पर्याय की दृष्टि से कहा जा सकता है। राजकुमार वर्द्धमान को भगवान महावीर कहना या युवराज को राजा शब्द से सम्बोधित करना, यह भावी पर्याय की दृष्टि ।
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