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द्रव्य से
कर्मों का
भाव से
आत्मा का
शुद्ध भावों की
आना
आत्मा से परस्पर मिलना
आना रूकना
एक देश क्षय होना
सर्वथा आत्मा से अलग होना
हिंसा आदि परिणाम
मिथ्यात्व आसक्ति परिणाम
सम्यक्त्व चारित्र परिणाम
धर्म ध्यानादि परिणाम
उत्पत्ति
वृद्धि पूर्णता
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आस्रव
बंध
संवर
निर्जरा
मोक्ष
आस्रव
बंध
संवर
निर्जरा
संवर
निर्जरा
मोक्ष
निक्षेप
नाम-स्थापना- द्रव्य भावतस्तन्नयासः ||5||
सूत्रार्थ - नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव के द्वारा जीवादि तत्त्वों का न्यास (निक्षेप / लोक व्यवहार) होता है।
विवेचन - नि उपसर्ग पूर्वक क्षिप् धातु से निक्षेप शब्द बना है । निक्षेप में नि का अर्थ हैं नियत और निश्चित । क्षेप का अर्थ है रखना या स्थापना करना। आशय यह है कि एक ही शब्द को प्रयोजन और प्रसंग के अनुसार अनेक अर्थो में प्रयोग किया जाता है। यह प्रयोग कहाँ किस अर्थ में किया गया है इस बात को बतलाना ही निक्षेप विधि का काम है। अतः शब्द के अर्थ का निश्चय करने को निक्षेप कहते हैं। प्रत्येक शब्द के कम से कम चार अर्थ मिलते हैं। ये चारों ही उस शब्द के अर्थ- सामान्य के चार विभाग हैं, जिन्हें निक्षेप या न्यास कहते है इन्हें जान लेने पर ही वक्ता का सही आशय समझा जा सकता है। ये चार निक्षेप इस प्रकार हैं- 1. नाम 2 स्थापना 3. द्रव्य और 4. भाव