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________________ ___ तत्त्वों के नाम जीवाजीवासव-बन्ध-संवर-निर्जरा-मोक्षास्तत्त्वम् ||4|| सूत्रार्थ - जीव, अजीव, आसव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष - ये सात तत्त्व हैं। विवेचन - आगम ग्रन्थों में पुण्य और पाप मिलाकर नौ तत्त्व कहे गये है परन्तु यहाँ पुण्य और पाप दोनों का आसव या बंध तत्त्व में समावेश करके सात बताये गये हैं। क्योंकि जीव की शुभाशुभ प्रवृत्ति के आधार से बंधनेवाले कर्मों में अनुभाग के अनुसार पुण्य-पाप का विभाग होता है। जीव - जो जीता है, जो प्राणों को धारण करता है, जिसमें चेतना है, जो सुख-दुख की अनुभूति करता हैं वह जीव है। अजीव - जिस द्रव्य पदार्थ में चेतनादि का अभाव हो वह अजीव है। आसव - शुभ और अशुभ रूप कर्मों का आना आसव है। बंध - आत्मा और कर्म प्रदेशों का परस्पर दूध और पानी की तरह मिलना वह बंध है। संवर - आते हुए कर्मो को रोकना संवर है। निर्जरा - कर्मो का एक देश या आंशिक रूप क्षय होना निर्जरा है। मोक्ष - सभी कर्मो का आत्मा से सर्वथा अलग हो जाना मोक्ष है। इन सात तत्त्वों का ही इस ग्रन्थ में विवेचन हआ है। सात तत्त्वों में सर्व प्रथम जीव को ही क्यों स्थान दिया गया है ? उत्तर है कि उक्त तत्त्वों का ज्ञाता, पुद्गलों का उपभोक्ता , शुभ और अशुभ कर्म का कर्ता तथा संसार और मोक्ष के लिए योग्य प्रवृति का विधाता जीव ही है। इसलिए जीव को प्रथम स्थान दिया गया है। जीव की गति में, अवस्थिति में, अवगाहना में और उपभोग आदि में उपकारक अजीव तत्त्व है, अत: जीव के बाद अजीव का उल्लेख है। जीव और पुद्गल का संयोग ही संसार है। उस संसार के मुख्य कारण आसव और बंध है। अत: अजीव के पश्चात् आस्रव और बंध को स्थान दिया हैं। जीव और पुद्गल का वियोग मोक्ष है। संवर और निर्जरा उस मोक्ष का कारण है। कर्म की पूर्ण निर्जरा होने पर मोक्ष होता है अत: संवर, निर्जरा और मोक्ष यह क्रम रखा गया हैं। सात तत्त्व जीव अजीव आसव बंध संवर निर्जरा मोक्ष द्रव्य भाव NAGAba 25 :09 FOneersondla Filvarease only 1259:3864 www.jalinelibrary.org
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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