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तथा द्वीप, समुद्र, पर्वत, क्षेत्र आदि द्वारा मध्यलोक का भौगोलिक वर्णन और उसमें रहनेवाले मनुष्य तथा तिर्यंच जीवों की आयु आदि का विवेचन प्राप्त होता है।
चौथे अध्याय में देवगति तथा ऊर्ध्वलोक का वर्णन है जिसमें देवों की विविध जातियाँ, उनके परिवार, भोग-स्थान, समृद्धि, जीवनकाल और ज्योर्तिमण्डल अर्थात् खगोल का वर्णन है।
___ पाँचवें अध्याय में अजीवतत्त्व के धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल और काल द्रव्यों के भेद, स्थितिक्षेत्र, प्रत्येक के कार्य, पुद्गल का स्वरूप उसके भेद और उत्पत्ति के कारण, पौद्गलिक बन्ध की योग्यता और अयोग्यता, द्रव्य का सामान्य लक्षण, काल को द्रव्य माननेवाला मतान्तर और उनकी दृष्टि से काल का स्वरूप, गुण और परिणाम के लक्षण, परिणाम के भेद आदि का विवेचन है।
इस प्रकार तीसरे-चौथे-पाँचवें अध्याय में सम्पूर्ण लोक विचारणा प्राप्त होती है। छठे से दसवें अध्याय तक चारित्र मीमांसा है।
चारित्र मीमांसा के सार भूत तथ्य : जीवन की हेय प्रवृत्तियों, उनके हेतु, मूल बीज, परिणाम आदि का विचार के साथ ही उन हेय प्रवृत्तियों के त्याग, त्याग के उपाय, उपादेय प्रवृत्तियों के ग्रहण और इनसे होने वाले परिणाम, विचारणीय विषय है।
___ छठे अध्याय में आश्रव का स्वरूप, उसके भेद तथा आश्रव सेवन से कौन-कौन से कर्म बंधते, इसका वर्णन है।
सातवें अध्याय में - श्रावक के बारह व्रतों का अतिचार सहित वर्णन है। साथ ही व्रतों की स्थिरता हेतु 25 भावनाएँ तथा दान का स्वरूप भी बताया गया है।
आठवें अध्याय में - आठ कर्म प्रकृतियाँ तथा कर्मबंध के मूल हेतु का वर्णन है।
नवें अध्याय में संवर और निर्जरा तत्त्व वर्णित है। संवर-निर्जरा के लक्षण, उपाय, भेद-प्रभेद आदि का विवेचन है।
दसवें अध्याय में केवलज्ञान के हेतु और मोक्ष का स्वरूप तथा मुक्ति प्राप्त करनेवाली आत्मा को किस रीति से कहाँ गति होती है, इसका वर्णन है।
इस प्रकार सम्पूर्ण तत्त्वार्थसूत्र में रत्नत्रयी रूप मोक्षमार्ग तथा जीव, अजीव, आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा, और मोक्ष इन सात तत्त्वों का संपूर्ण विवेचन हुआ है।
___ जब मैंने अपने स्वाध्याय के अन्तर्गत इस विशिष्ट ग्रंथ गुरू के द्वारा का परायण किया तो इस ग्रंथ के प्रति मेरे हृदय में एक अनूठी श्रद्धा का जन्म हुआ। मुझे लगा, अगर, इस ग्रंथ को सरल, सहज भाषा में चित्र, चार्ट एवं तालिकाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया जाये तो तत्त्व जिज्ञासु इसके माध्यम से अवश्य ही तत्त्व के प्रति और अधिक श्रद्धान्वित हो सकेंगे।
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