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हृदय में भी संस्कृत के प्रति विशेष आदर था।
उस समय कणाद का वैशेषिक सूत्र, बादरायण का ब्रह्मसूत्र, पंतजलि का योग सूत्र आदि कई ग्रन्थ अपने-अपने दर्शन के मूल सिद्धांत संस्कृत भाषा में, सूत्र शैली में रचे जा चुके थे। ऐसी परिस्थितियों में जैन वाड्मय में भी ऐसे ग्रन्थ की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी जो संस्कृत भाषा में हो और सम्पूर्ण जैन सम्प्रदायों द्वारा मान्य हो।
वाचक उमास्वाति ने प्राकृत के साथ साथ संस्कृत भाषा का भी गहरा अध्ययन किया था। उन्होंने आगम ग्रन्थों के आधार पर तत्व एवं आचार सम्बन्धित विषयों का संस्कृत भाषा में सूत्ररूप में तत्त्वार्थ सूत्र की रचना की।
विषय वर्णन : कोई भी भारतीय शास्त्रकार जब स्वीकृत विषय पर शास्त्र रचना करता है तब वह अपने विषय निरूपण के अंतिम उद्देश्य के रूप में मोक्ष को ही रखता है, फिर भले ही वह विषय अर्थ, काम, ज्योतिष या वैद्यक जैसा भौतिक हो अथवा तत्त्वज्ञान और योग जैसा आध्यात्मिक | सभी मुख्य-मुख्य विषयों के शास्त्रों के प्रारंभ में उस उस विद्या के अंतिम फल के रूप में मोक्ष का ही निर्देश हुआ और उपसंहार में भी उस विद्या से मोक्ष सिद्धि का कथन किया गया है। वाचक उमास्वाति ने भी अंतिम उद्देश्य मोक्ष रखकर ही, उसकी प्राप्ति का उपाय सिद्ध करने के लिए, निश्चित किये हुए सभी तथ्यों का वर्णन अपने तत्त्वार्थ सूत्र में किया है।
विषय का विभाजन : तत्त्वार्थ सूत्र के वर्ण्य विषय को वाचक उमास्वाति ने दस अध्यायों में इस प्रकार से विभाजित किया है -
पहले अध्याय में ज्ञान मीमांसा का विवेचन, दूसरे से पांचवें तक ज्ञेय मीमांसा का विवेचन, छठ से दसवें तक चारित्र मीमांसा का विवेचन है।
ज्ञान मीमांसा के सारभूत तथ्य : प्रथम अध्याय में मोक्षमार्ग एवं ज्ञान का स्वरूप का विवेचन करते हुए - नय और प्रमाण रूप से ज्ञान का विभाजन, मति आदि आगम प्रसिद्ध पांच ज्ञान और उनका प्रत्यक्ष-परोक्ष दो प्रमाणों के द्वारा संपूर्ण ज्ञान मीमांसा का विवेचन हुआ है।
ज्ञेयमीमांसा के सारभूत तथ्य : ज्ञेय मीमांसा में जगत् के मूलभूत जीव और अजीव इन दो तत्त्वों का वर्णन है। जिनमें से मात्र जीव तत्त्व की चर्चा दो से चार तक इन तीन अध्यायों में है।
दुसरे अध्याय में जीव के भाव (परिणाम), भेद, प्रभेद, इन्द्रिय, योनि, शरीर, जाति, मृत्यु और जन्म के बीच की स्थिति, जीव की टूटने और न टूटने वाली आयु आदि का वर्णन है।
तीसरे अध्याय में अधोलोक वासी नारकी जीव और उनकी वेदना तथा आयु मर्यादा आदि