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निवास
व्यवहार के अनुसार आकर उनसे धर्मतीर्थ
प्रवर्तन की प्रार्थना करते है। ये देव विषय रति से परे होने से देवर्षि कहलाते हैं। आपस में छोटे-बड़े न होने से सभी स्वतन्त्र हैं।
| पाँचवें ब्रह्मलोक
के आठ कृष्ण राजियों की
खाली
जगह में।
नाम की
सार्थकता
T
शीघ्र ही
लोक
(संसार)
लोकान्तिक देवों के विमान आवास है। इन विमान में रहने वाले क्रमश देवों के नाम क्रमशः 1. सारस्वत, 2. आदित्य, 3. वन्हि, 4. अरूण, 5. गर्दतोय, 6. तुषित, 7. अव्याबाध, 8. मरूत और 9. अरिष्ट है।
का अंत
करने वाले
होने से
इन लोकांतिक देवों के स्वामी सम्यग्दृष्टि तथा एक भवावतारी होते है। लोक का शीघ्र ही अंत करने वाले होने से इन्हें लोकान्तिक देव कहते हैं। ये देव तीर्थंकर जब दीक्षा लेने का विचार करते है तब वहाँ पर अपने जीत
लोकान्तिक देव
भेद
1. सारस्वत
2. आदित्य
3. वन्हि
4. अरूण
5. गर्दतोय
6. तुषि
7. अव्याबाध
8. मरूत
9. अरिष्ट
विशेषता
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sonartovate
1. स्वतंत्र
2. देवर्षि (ब्रह्मचारी)
3. सम्यग्दृष्टि
4. संसार से विरक्त
5. एक भवावतारी
6. तीर्थंकरो को दीक्षा लेने के लिए विनंती करते हैं।
इनके अलावा वैमानिक देवलोक में तीन प्रकार के किल्विषिक (सफाई करनेवाले) देव, जो पहले, तीसरे तथा छठे देवलोक के नीचे रहते हैं।