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चौदह पूर्वधारी साधु पाँचवें देवलोक अर्थात् ब्रह्मलोक से सर्वार्थसिद्ध तक। मिथ्यादृष्टि साधु नवग्रैवेयक तक। अन्य लिंग मिथ्यादृष्टि साधु बारहवें देवलोक तक।
पीत-पद्म-शुक्ल-लेश्या द्वि-त्रि-शेषेषु ।।23।।
सूत्रार्थ : दो, तीन और शेष देवलोक में क्रमश: पीत, पद्म, शुक्ल लेश्या होती हैं।
विवेचन : पहले-दूसरे देवलोक में पीत (तेजो) लेश्या होती है। तीसरे, चौथे, पाँचवें देवलोक में पद्म लेश्या होती है। छठे से सर्वार्थसिद्ध तक शुक्ल लेश्या होती है।
प्राग्-ग्रैवेयकेभ्य:कल्पाः ||24||
सूत्रार्थ : ग्रैवेयक के पहले-पहले देवलोकों में कल्प की व्यवस्था होती है।
लोकांतिक देवों का वर्णन ब्रह्मलोका-ssलया लोकान्तिकाः ।।25।।
सूत्रार्थ : लोकान्तिक देवों का निवास स्थान पाँचवा ब्रह्मलोक है।
विरय विमान
आदित्यलोकनिक अधिरेव सिमान
सारस्वता-sऽदित्य-वन्हि-अरूण-गर्दतोय-तुषिता-ऽव्याबाध-मरूतो-ऽरिष्टाश्च ||26।।
सूत्रार्थ : लोकान्तिक देव नौ प्रकार के है - 1. सारस्वत, 2. आदित्य, 3. वन्हि, 4. अरूण, 5. गर्दतोय, 6. तुषित, 7. अव्याबाध, 8. मरूत और 9. अरिष्ट।
विवेचन : उपर्युक्त सूत्रों में लोकान्तिक देवों का निवास स्थान तथा उनके प्रकार बताये गये हैं। पाँचवें देवलोक के दक्षिण दिशा में असंख्यात योजन की आठ कृष्णराजि है। कृष्ण अर्थात् काला पाषाण रूप, राजि अर्थात् शिलाएँ। यह कृष्णराजि काले रत्नों की बनी हुई है। इनके नाम इस प्रकार है - 1. कृष्णराजी, 2. मेघराजी, 3. मघा, 4. माधव, 5. वातपरिधा, 6. वातपरिक्षोभा, 7. देवपरिधा और 8. देवपरिक्षोभा। इन आठ कष्णराजियो के आठ खाली जगहों में आठ लोकान्तिक देवों के विमान है और एक विमान बीच में है। सब मिलाकर कुल नौ
4 मापवती
8.देवर भाभा
वानपरिधा
३.अडकारित रयर देव विमार
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जयाबाद लोकानिक मान व विमान
विमाकतिक
freeववियन 7.देवपरिधा
प्रका देव विमान
5. गर्दनाया लोकानिक. IL चन्द्रात देव विमान 6. जोषिया लोकालिक मर्यात देव विधान