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3. परिग्रह: परिग्रह अर्थात् आसक्ति। ऊपर-ऊपर देवलोक में विमानों की संख्या भी कम है और उनका परिग्रह (आसक्ति) भी कम हो जाता है।
4. अभिमान : अभिमान अर्थात् अहंकार । यद्यपि शक्ति, स्थिति द्युति आदि ऊपर के देवों में अधिक-अधिक होती है फिर भी उनमें कषायों की मन्दता - भावों की गंभीरता के कारण अहंकार उत्तरोत्तर कम होता है।
इन देव सम्बन्धी उपयुक्त बातों के अतिरिक्त अन्य निम्नलिखित कुछ सामान्य बातें भी जानने योग्य है। जो इस प्रकार है -
1. उच्छूवास : जैसे-जैसे देवों की आयु स्थिति बढती जाती है वैसे-वैसे उच्छवास का समय भी बढता जाता है। जैसे दस हजार वर्ष की आयुवाले देवों का एक-एक उच्छवास सात-सात स्तोक में होता है। एक पल्योपम की आयुवाले देवो का उच्छवास एक दिन में एक ही होता है। सागरोपम की आयुवाले देवों जितने सागरोपम की आयु हो उतने पक्ष में ( 15 दिन) उनका एक उच्छवास होता
है।
2. आहार : देवता मनुष्य की तरह कवलाहार नहीं करते वे चारों ओर से योग्य पुद्गलों को ग्रहण करके आहार सम्बन्धी आवश्यकता पूरी कर लेते हैं। दस हजार वर्ष की आयुवाले देव एकएक दिन बीच में छोडकर आहार लेते हैं। पल्योपम आयुवाले देव 2 दिन से लेकर 9 दिन का समय के बीच आहार ग्रहण करते हैं। सागरोपम स्थिति वाले, जितने सागरोपम की उनकी आयु होती है, उतने हजार वर्ष बाद वे आहार ग्रहण करते हैं।
उच्छवास
आहार
10,000 वर्ष
1 उच्छवास
7 स्तोक में
एक दिन
छोड़कर एक दिन
1 पल्योपम
एक दिन में
एक बार
2 से 9
दिन के बीच
1 सागरोपम
15 दिन में
एक बार
1 हजार वर्ष
बाद
3. वेदना : सामान्यता देवों के सातावेदनीय कर्म का ही उदय रहता है। इसलिए वे साता (सुख) का ही अनुभव करते हैं। कभी आसाता वेदनीय का उदय हो भी जाय तो वह अन्तर्मुहूर्त से ज्यादा नहीं रहता।
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4. उपपात : उपपात अर्थात् उत्पन्न होना। देवों के जन्म लेने को उपपात कहा जाता है। सम्यग्दृष्टि साधु-सर्वार्थसिद्ध तक उत्पन्न हो सकते हैं।
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