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________________ 7. अवधिज्ञान : अवधिज्ञान से जानने योग्य पदार्थों को अवधि विषय कहते हैं। ऊपर के देवों में अवधिज्ञान भी अधिक विस्तृत और अधिक विषयों को ग्रहण करनेवाला तथा निर्मल होता है। पहले-दूसरे स्वर्ग के देव - नीचे रत्नप्रभा नरक तक तथा ऊपर अपने भवन तक देख सकते है। तीसरे-चौथे - नीचे शर्करा प्रभा नरक तक तथा ऊपर अपने भवन तक देख सकते है। पांचवे-छठे - नीचे बालुकाप्रभा तक तथा ऊपर अपने भवन तक देख सकते है। सातवें-आठवें - नीचे पंकप्रभा तक तथा ऊपर अपने भवन तक। नौवें से बारहवें तक - नीचे धूमप्रभा तक तथा ऊपर अपने अपने भवन तक। नवग्रैवेयक - नीचे तम:प्रभा तक तथा ऊपर अपने अपने भवन तक। अनुत्तर विमानवासी - संपूर्ण त्रसनाडी को देख सकते हैं। गति-शरीर-परिग्रहा-ऽभिमानतो हीनाः ।।22।। सूत्रार्थ : गति, शरीर, परिमाण, परिग्रह और अहंकार - ये चारों ऊपर-ऊपर के देवों में हीनहीन होते हैं। विवेचन : निम्न चार बाते नीचे की अपेक्षा ऊपर के देवों में उत्तरोत्तर कम होती है। 1. गति : गमन क्रिया की प्रवृत्ति ऊपर-ऊपर देवों में कम होती है। ऊपर के देवों में उदासीन भाव बढता जाता है अत: उनको इधर-उधर जाने की रूचि कम हो जाती है। 2. शरीर : शरीर की ऊँचाई ऊपर-ऊपर के देवों में कम होती जाती है। शरीर सात हाथ देवलोक पहले-दूसरे तीसरे-चौथे पाँचवे-छठे सातवें-आठवें नौवें से बारहवें तक नव ग्रैवेयक अनुत्तर विमानवासी छ हाथ पाँच हाथ चार हाथ तीन हाथ दो हाथ एक हाथ का शरीर होता है। FAS Shala Raatenden bflemstshare tersonatalieuse Rahmgibralt
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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