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________________ वैमानिक देव (विमानों में रहने वाले देव) कल्पोपपन्न कल्पातीत इन्द्रादि 10 प्रकार की व्यवस्था होती है अहमिन्द्र सभी इन्द्र होते है, इन्द्रादि 10 प्रकार की व्यवस्था नहीं होती बारहवें देवलोक तक 9 ग्रैवेवक और 5 अनुत्तर विमान देवों की उत्तरोत्तर अधिकता और हीनता विषयक बातें स्थिति-प्रभाव-सुख-धुति-लेश्या-विशुद्धीन्द्रिया-sवधि-विषयतोऽधिकाः ||21|| सूत्रार्थ : आयु, सामर्थ्य, सुख, दीप्ति, लेश्या-विशुद्धि, इन्द्रिय, विषय और अवधिज्ञान का बल -ये सातों ऊपर-ऊपर के देवों में अधिक अधिक होते हैं। विवेचन : नीचे नीचे के देवों से ऊपर-ऊपर के देव उपर्युक्त सात बातों में अधिक होते है। ये सात बाते निम्नलिखित है। ___1. स्थिति : अर्थात् आयु। अपने द्वारा प्राप्त हुई आयु के उदय से उस भव में शरीर के साथ रहना स्थिति कहलाती है। इसका विशेष स्पष्टीकरण आगे सूत्र 30 से 53 तक किया गया है। 2. प्रभाव : अनुग्रह-निग्रह करने का सामर्थ्य, अणिमा महिमा आदि सिद्धियों का सामर्थ्य, दूसरों से काम करवाने का बल यह सब प्रभाव के अन्तर्गत आता है। ये सब उत्तरोत्तर देवों में अधिक है किन्तु कषाय की मन्दता के कारण वे इनका उपयोग नहीं करते है। 3. सुख : इन्द्रियों द्वारा ग्रहण किये गये विषयों का अनुभव करना। 4. द्युति : शरीर, वस्त्र, आभूषण आदि की कांति को द्युति कहते है। ये दोनों उत्तरोत्तर देवों में अधिक होती है। 5. लेश्या विशुद्ध : कषाय से रंगी हुई योग प्रवृत्ति लेश्या कहलाती है। लेश्या की निर्मलता लेश्या विशुद्धि है। इसका विवरण सूत्र 23 में किया गया है। 6. इन्द्रियविषय : इन्द्रिय द्वारा जानने योग्य पदार्थ को इन्द्रिय विषय कहते है। नीचे के देवों की अपेक्षा ऊपर के देवों की इन्द्रिय ग्रहण शक्ति अधिक होती है। www.airtelibrary.org
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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