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________________ मिनट, सेकण्ड आदि का व्यवहार होता है। ग्रह नक्षत्रों के साथ चंद्रमा के योग से प्राणियों के शुभाशुभ कर्म प्रभावित होते हैं। बहि-रवस्थिता ||16|| सूत्रार्थ : मनुष्य लोक के बाहर के ज्योतिष्क देव स्थिर होते हैं। विवेचन : अढ़ाई द्वीप के बाहर असंख्य द्वीप और समुद्रों में ज्योतिष देव सदा स्थिर रहते हैं, क्योंकि उनके विमान स्वभावत: एक स्थान पर स्थिर रहते हैं। इसी कारण वहाँ समय, मुहूर्त, घड़ी, दिन-रात आदि काल व्यवहार नहीं होता। वहाँ, जहाँ रात्री है, सदा रात्रि एवं जहां दिन है वहां सदा दिन ही रहता है। ज्योतिष देव (प्रकाशमान होने के कारण) अढ़ाईद्वीप में अढ़ाईद्वीप के बाहर सूर्य, चन्द्र, असंख्यात सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारा। ग्रह, नक्षत्र, तारा। 132 चन्द्र-132 सूर्य हमेशा स्थिर रहते है। निरन्तर गतिशील है। मेरूपर्वत की प्रदक्षिणा देते है। व्यवहार काल विभाग के हेतु है। व्यवहारकाल नहीं होता है। वैमानिक देवों का वर्णन वैमानिकाः ||17|| सूत्रार्थ : विमानों में रहने वाले देव वैमानिक हैं। कल्पोपन्नाः कल्पातीताश्च ||18।। सूत्रार्थ : वैमानिक देव दो प्रकार के हैं - 1. कल्पोपपन्न और 2. कल्पातीत।
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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