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________________ इस प्रकार सम्पूर्ण ज्योतिष्क चक्र 110 योजन ( 790 से 900 ) में फैला हुआ है। ज्योतिष्क देवों के चिन्ह उनके मुकुट में होते है, उनसे उनकी पहचान होती है। सूर्य के मुकुट में सूर्य मंडल का चिन्ह होता है, चन्द्रमा के मुकुट में चन्द्र मण्डल का । इसी प्रकार विभिन्न गृह, नक्षत्र और तार के मुकुटों में भी इन इनके मण्डलों के चिन्ह होते हैं। स्वाति 790 मंगल सूर्यश चन्द्र स्फटिक रत्नमय बुध तत्कृतः कालविभागः ||15|| चन्द्र सूर्य नक्षत्र मेरूप्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलोके ||14|| सूत्रार्थ : उक्त पाँचों ज्योतिष्क देव मनुष्य लोक में हमेशा गतिशील रहते हुए मेरूपर्वत की प्रदक्षिणा लगाते हैं। 89 . शुक्र विवेचन : मनुष्य लोक के ज्योतिष्क देव कम से कम 1121 योजन दूर रहकर निरन्तर मेरूपर्वत के चारो ओर भ्रमण करते रहते हैं। अढाईद्वीप में कुल 132 सूर्य और 132 चन्द्र निरन्तर 5 मेरूपर्वतों की प्रदक्षिणा दे रहे हैं। जिनका विवरण पहले किया जा चुका है। एक सूर्य और चन्द्र का परिवार 28 नक्षत्र, 88 ग्रह और 66975 कोटा की तारो का होता हैं। यद्यपि सूर्य, चन्द्र आदि के विमान स्वयं ही स्वभावत: अपने अपने मंडल में घूमते रहते हैं, तथापि उनके आभियोगिक देव तथाविध नामकर्म के उदय से स्व समान जाति में अपनी कीर्तिकला प्रकट करने के लिए कुछ देव उन विमानों को उठाते हैं। सामने के भाग में सिंहाकृति, दाहिने गजाकृति, पीछे वृषभकृति और बाये अश्वाकृतिवाले देव विमान को उठाकर चलते रहते हैं। सूत्रार्थ : उन (गतिशील ज्योतिष को) के द्वारा काल का विभाग हुआ है । विवेचन : ज्योतिष्क देवों के भ्रमण (गति) से काल का विभाग होता है । समय, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, वर्ष, अतीत, अनागत, वर्तमान संख्यात् असंख्यात् आदि अनेक प्रकार के काल व्यवहार मनुष्य लोक के ही होता है। सूर्य- - चन्द्र के परिभ्रमण से धरती पर दिन-रात, सर्दी-गर्मी आदि पड़ती है। समय, घंटा, www.jalwelibrary.org
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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