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________________ नव ग्रैवेयक तथा पांच अनुत्तर विमानों के कोई इन्द्र नहीं होते क्योंकि वे कल्पातीत देव हैं। पीतान्तलेश्याः ||7|| सूत्रार्थ : प्रथम दो निकाय के देव पीत पर्यन्त लेश्यावाले हैं। विवेचन : भवनपति और व्यन्तर जाति के देवों में शारीरिक वर्ण रूप, द्रव्य, लेश्या कृष्ण, नील, कापोत और पीत (तेजः) ये चार ही मानी जाती है - देव भवनपति व्यन्तर ___ ज्योतिष्क । वैमानिक जो भवनों में विविध प्रकार ज्योतिर्मय विमानो में निवास करते के रिक्त स्थानों विमान में निवास में निवास निवास नाम स्वरूप भेद 10 12 भेद के देखिए सूत्र सूत्र नाम 20 लेश्या पहले, दूसरे -पीत तीसरे, (कृष्ण, नील | (कृष्ण, नील __ (पीत) चौथे, पांचवे-पद्म कापोत, पीत) | कापोत, पीत) छठे से सर्वार्थसिद्ध तक-शुक्ल लेश्या 8 10 (त्रायस्त्रिंश और (त्रायस्त्रिंश और लोकपाल नहीं) लोकपाल नहीं) प्रत्येक के सामान्य भेद इन्द्र, सामानिक आदि) इन्द्र 20 10 16 दक्षिणार्थ-8 | उत्तरार्थ - 8 | दक्षिणार्थ - 10 उत्तरार्थ - 10 असंख्यात प्रत्येक गृह में सूर्य और चन्द्र 1-8 = 8 9-10 =1 11-12 = 1 TRADAILME ( 5 843043 Jadeau internetionar 85.? ForPersonalvalese Onty www.jamelibrary.org
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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