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(अ) चतुराधनी सल्लेखना और वैराग्यमय तप (ब) अस्पष्ट ।
(अ) दो धर्मध्यानी गृहस्थ की सल्लेखना जंबूद्वीप में (ब) तीन शुक्लध्यानी वातावरण
अस्पष्ट ।
(अ) पुरुषार्थी का रत्नत्रय धारण एवं निश्चय - व्यवहार धर्म की शरण में जाना (ब) वातावरण तीन शुक्ल ध्यानों का ।
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अस्पष्ट ।
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(अ) भवचक्र / दो शुक्लध्यानी वातावरण
अस्पष्ट ।
(अ) पंचम गति से चतुर्गति क्षय करने वाला अणुव्रती वीतरागी तपस्वी था (ब) तीन शुक्लध्यानी वातावरण बनाया ।
690 / 91 - अस्पष्ट ।
(अ) क्षत्री चार अनुयोगी चतुर्विध संघाचार्य की शरण पहुंचकर सप्त तत्त्व चिंतन में लीन हुआ (ब) पुरुषार्थी ने वीतराग तपस्या द्वारा तीसरा शुक्लध्यान पाया (केवलत्व पाया)।
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page No. CI 693-712 M.S.V.
नौ पदार्थों का चिंतन मोक्ष पथ प्रदर्शक बनकर साधक को कैवल्य प्राप्त कराकर मोक्ष (क्रमोन्नति से) दिलाता है ।
(अ) भवचक्र को पार करने वह निकट भव्य (चौथे भव का मोक्षार्थी ) बनता है ।
(ब) तीन धर्म ध्यानी तपस्वी आत्मस्थ होकर रत्नत्रय पालता है ।
चारों कषायों को त्यागकर भवघट से तिरने में छत्रधारी सफल होता है ।
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लोकपूरण करता आत्मा दूसरे शुक्लध्यान की प्राप्ति आत्मस्थ होकर करता है ।
वातावरण को वीतरागी ने वैराग्य से बनाया है ।
त्यागी आरंभी गृहस्थ गुणस्थानोन्नति करता हुआ रत्नत्रयी तपस्वी बन सकता है और वीतरागता धारण कर समाधिमरण को चतुराधन सहित कर लेता है । ।
ताड़ वृक्ष के नीचे भी दूसरे शुक्लध्यान की प्राप्ति नौ पदार्थ चिंतन करते हुए वीतरागी तपस्वी कर सकता है । पंचम गति के लिए पंच परमेष्ठी आराधक चार धर्म ध्यानी संघ में जाता है। वातावरण दो शुक्लध्यान का बनाता है । ( अ ) अष्टापद युगल श्रंग शिखर (ब) मांगीतुंगी के शिखर पर जिन संघ की शरण में अपने षट आवश्यक करता है । (अ) युगल बंधुओं ने वीतराग तपस्या द्वारा चारों कषायों को दूर करके आत्मस्थता प्राप्त की और अरहंत पद पाया। (ब) तीन शुक्ल ध्यानों का वातावरण ।
अस्पष्ट ।
स्वसंयमी तपस्वी की तरह वैयाव्रत्य का झूला दो शुक्लध्यानों की प्राप्ति षद्रव्यों का चिंतन करते हुए तपस्या और कर्मक्षय । निकट भव्य का वातावरण । उसने वैराग्य तपस्या धारण की ।
तपस्वी ने इसी अवसर्पिणी में सल्लेखना ली।
अंतहीन भटकन में उलझे संसारी जीव ने चारों गतियों के नाशन हेतु पुरुषार्थ बढ़ाते हुए क्रमोन्नति द्वारा वैराग्य धारण कर मोक्षपथी गुणस्थानोन्नति की ।
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