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अस्पष्ट ।
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(अ) रत्नत्रयी वातावरण (ब) पंचम गति के आराधक केवली (संघ में) (पंच पांडव ?) (अ) त्यागी ने वैराग्य धारण करके षट् द्रव्य श्रद्धान किया । (ब) अस्पष्ट । रत्नत्रयी जंबूद्वीप में त्यागी दो धर्म ध्यानों के सहित सल्लेखना जागृति रखते वैराग्य धारण करते हैं । (अ) ढाईद्वीप में दो ध्यान वैराग्य की ओर ले जाते हैं । (ब) भवघट से तिरने के लिए तीर्थकर जैसी तपस्या व्दारा चर्तुगति भ्रमण रोकना होता है । (अ) एकदेश त्यागी का स्वसंयम धारण और पंच परमेष्ठी आराधन ।
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(ब) अस्पष्ट । 660- वातावरण तीन शुक्लध्यानों वाला, दो धर्म ध्यानों से (क्रमोन्नति द्वारा)। 661- त्यागी का जिनशासन की शरणागत होकर अदम्य पुरुषार्थ करना वैराग्य धारण करके सप्त तत्त्व चिंतन करना । 662- अस्पष्ट । 663- (अ) महाव्रती (ब) अस्पष्ट । 664- (अ) त्यागी का स्वसंयम धारण और पंच परमेष्ठी आराधन (ब) सप्त नय और केवलत्व | 665- अस्पष्ट । 666- (अ) पंचम गति से चर्तुगति क्षय रत्नत्रयी वातावरण द्वारा शुद्धात्म प्राप्ति (ब) दो शुक्लध्यानी वातावरण । 667- (अ) रत्नत्रयी जंबूद्वीप में छत्री और त्यागी का वैराग्य (ब) वातावरण । 668- (अ) चतुर्भनुयोगी निश्चय-व्यवहार धर्म की शरण और पंच परमेष्ठी आराधन (ब) अस्पष्ट | 669- अस्पष्ट । 670- (अ) आर्यिका /ऐलक का अदम्य पुरुषार्थ पुनः पुरुषार्थ और वीतरागी तप (ब) वातावरण तीन शुक्लध्यानों का। 671- अस्पष्ट । 672- (अ) उच्च श्रावक आरंभी गृहस्थ की तीन धर्म ध्यानी स्थिति से निकट भव्यत्व पाकर, गुणस्थानोन्नति और सप्त तत्त्व,
चिंतन करता (ब) गुणस्थानोन्नति से पंचम गति साधना युगल श्रृंग पर सल्लेखना झूला पाते हुये दो शुक्लध्यान और
अरहंत सिद्ध को स्मरण किया। 673- भव चक्र पार करने दो धर्मध्यानों से आर्यिका और त्यागी ने स्वसंयम धारकर क्रमोन्नति से चार शुक्लध्यानी वाता 674- (अ) वातावरण में षट् द्रव्य चार अनुयोगो का श्रद्धान करते गुणस्थानोन्नति और गिरान करते हुए क्रमशः दो शुक्ल
ध्यान पाए। (ब) तीन शुक्लध्यानी वातावरण बनाया।
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