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528- (अ) निश्चय-व्यवहार धर्मी की सल्लेखना ।
(ब) रत्नत्रयी तीन ध्यान । (अ) दो शुक्लध्यानी वातावरण ।
(ब) तीन शुक्लध्यान (धर्म ध्यान) ? 532- (अ) आरंभी गृहस्थ का रत्नत्रय पालन और त्रिगुप्ति ।
(ब) तीन (शुक्ल) धर्म ध्यान । 536- गुणस्थानोन्नति करता महाव्रतियों का रत्नत्रयी समूह गुणस्थानोन्नति वाला वातावरण ।
(अ) रत्नत्रयी सल्लेखी द्वारा वैराग्य और चतुराधन ।
(ब) तीन शुक्लध्यानी वातावरण । 543- (अ) चतुराधक सल्लेखी द्वारा पंच परमेष्ठी आराधन ।
(ब) चार शुक्लध्यानों वाला वातावरण 544- (अ) सल्लेखना तत्पर दो धर्मध्यान त्यागी का स्वसंयम बढ़ाते हैं ।
(ब) चार (शुक्ल)/धर्म ध्यानों तक पहुंचाते हैं । 545- (अ) चतुर्गति भ्रमण |
(ब) भवधट तिरना। 549- (अ) घातिया चतुष्क क्षय करने वाला, भवघट तिरने वाला, वैराग्य तप ।
(ब) तीन शुक्लध्यानी वातावरण । 550- (अ) दो शुक्लध्यानी वैराग्यमय तप ।
(ब) दो शुक्लध्यानों वाला वातावरण । (अ) समतावान त्यागी का स्वसंयम | (ब) दो शुक्लध्यानी वातावरण । अष्टगुण वैभव प्राप्त करने वाले केवली दूसरे शुक्लध्यान के स्वामी होते हैं दो शुक्लध्यानों का वह वातावरण होता है (अ) निश्चय-व्यवहार धर्मी तीसरे धर्मध्यान के अधिकारी । (ब) दो शुक्लध्यान तक आत्म साधना तत्पर रहते हैं । (अ) अर्हत और सिद्ध अवस्था वीतराग तपस्या से प्राप्त होती है ।
(ब) निकट भव्य का वातावरण | 561- निकट भव्य सल्लेखी है ।
(बीच के संकेताक्षर अस्पष्ट हैं) 573- (अ) निश्चय-व्यवहार धर्मी दो धर्म ध्यानी सल्लेखी ऐलक प्रतिमा धारण कर संघस्थ हुए और वैराग्य के वातावारण में
पंच परमेष्ठी आराधक थे/घातिया चतुष्क नाश करते निकट भव्य ने पंचाचार किया ।
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