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________________ 499- (अ) त्यागी निकट भव्य गुणस्थानोन्नति करता है। (ब) दो शुक्लध्यानी वातावरण । 500- (अ) गुणस्थानोन्नति से निश्चय-व्यवहार धर्म की साधना तीसरे शुक्लध्यान तक की जा सकती है। (ब) वजवृषभनाराच संहनन वाला महामत्स्य भी तीन धर्मध्यान का तप कर सकता है । (अ) चारों कषाऐं त्यागकर त्यागी ने पंच परमेष्ठी आराधन किया । (ब) यह चार शुक्लध्यानी वातावरण तक (मोक्ष तक) पहुंचा सकता है । 502- (अ) पुरुषार्थ से ही सिद्धत्व और तीर्थकर पद मिलते हैं। (ब) तीसरे शुक्लध्यान का वातावरण केवलत्व का मिलता है । 503- (अ) चारों कषाएँ त्यागकर त्यागी ने पंच परमेष्ठी आराधन किया। (ब) वातावरण तीन शुक्लध्यानों तक का । (अ) गुणस्थानोन्नति करके बारहवें गुणस्थानी ने भवघट पर से तिरने वातावरण अरहंत पद वाला पाया । (ब) तीसरे शुक्लध्यान वाला वातावरण | (अ) दो शुक्लध्यानी तपस्वी । (ब) लोकपूरणी । (अ) महामत्स्य सा संहनन हर उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल में सिद्धत्व लाता है । (ब) संघाचार्य । (अ) समाधिमरणी सल्लेखी वैराग्य बनाए रखकर पंच परमेष्ठी आराधन करता है । (ब) चार शुक्लध्यान का वातावरण बनाता है । (अ) रत्नत्रय ढ़ाईद्वीप में वैराग्य और पंच परमेष्ठी आराधन से जोड़ता है । (ब) तीन शुक्लध्यानों का वातावरण बनता है। 516- (अ) अर्धचक्री का पुरुषार्थ पंचाचारी सल्लेखना से जोड़ता है। (ब) वातावरण पुरुषार्थी वाला तीन शुक्लध्यान वाला बनता है । (अ) पंचम गति। (ब) गृहत्यागी का वैराग्य और धर्मध्यान । (अ) तीन धर्म ध्यानों से भवघट तिरने का मार्ग । (ब) पंचम गति । (अ) पुरुषार्थ से वैराग्य । (ब) पुरुषार्थ से तीन शुक्लध्यान प्राप्ति । 526- (अ) अष्टकर्म जन्य चतुर्गति भ्रमण । (ब) तीन ध्यान। 77 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004058
Book TitleSaindhav Puralipime Dishabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSneh Rani Jain
PublisherInt Digambar Jain Sanskrutik Parishad
Publication Year2003
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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