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(अ) तीन धर्मध्यानों वाले संघ आचार्य दश धर्म सेवी होते हैं। (ब) तीन धर्मध्यानों के लिए भी (पंचम गुणस्थानी चर्या हेतु) संहनन महामत्स्य जैसा चाहिए । (अ) पंचम गति चार शुक्लध्यानों और रत्नत्रय से संभव होती है। (ब) पंचम गति की यात्रा तीन धर्मध्यानों से प्रारंभ होती है । ऐलक रत्नत्रयी वातावरण और वैराग्य धारता है । भवघट से तिरने तीर्थकर चतुर्गति भ्रमण को नाश करते हैं और पंच परमेष्ठी आराधना करते हैं । (अ) चार शुक्लध्यानों का वातावरण (मुक्ति का प्रदाता है)। (ब) महामत्स्य सा वजवृषभनाराच संहनन तीन शुक्लध्यानी तपस्वी कर सकता है । (अ) अर्धचक्री का वातावरण। . (ब) त्यागी उच्च श्रावक प्रतिमाएं धारण करके एकदेश वैराग्य तप करते गुणस्थानोन्नति करते हैं । (अ) जंबूद्वीप में अर्धचक्री भी संयम का पुरुषार्थ कर सकता है। (ब) भवघट तिरने के लिए घातिया चतुष्क का नाशन आवश्यक है । (अ) तीन शुक्लध्यानों वाला वातावरण। (ब) त्यागी चतुर्विध संघाचार्य की शरण लेकर पंच परमेष्ठी आराधन करते हैं । (अ) त्यागी षट् आवश्यक करें। (ब) वातावरण तीन शुक्लध्यानों वाला तक बन सकता है । (अ) निकट भव्य सप्त तत्त्व चिंतन करते हैं।' (ब) अस्पष्ट । (अ) सल्लेखी भवघट तिरने निश्चय-व्यवहार धर्मी वातावरण बनाते और पंच परमेष्ठी आराधन करते हैं। (ब) पंचम गति का साधन चार शुक्लध्यानों से । (अ) सीमा बांध महाव्रती सप्त तत्त्व चिंतन करते हैं। (ब) तीन शुक्लध्यानी वातावरण का लक्ष्य । (अ) भवघट तिरने पुरुषार्थी ने गुणस्थानोन्नति की। (ब) वातावरण । (अ) शुक्लध्यानी वातावरण। (ब) तीन शुक्लध्यान । (अ) ऐलक, आर्यिका की वैराग्य साधना। (ब) वातावरण । (अ) पंचम गति के लिए तीर्थकरत्व की प्राप्ति स्वसंयमी शाकाहार से प्राप्त होती है । (ब) चार शुक्लध्यानी वातावरण |
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