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(अ) दण्ड बना आत्मा गुणस्थानोन्नतिरत पुरुषार्थी वैराग्यवान था जिसने लोकपूरण किया ।
(ब) चतुराधन करते अर्धचकी ने घातिया कर्मोंका क्षय किया ।
(अ) दुर्घ्यानों को त्यागकर एकदेश त्यागी ने चतुराधन किया ।
(ब) लोकपूरण तक की किया की।
(अ) ऐलक पूर्व में सम्राट (छत्री ) था और वैराग्य धारण करके तपस्वी बन गया ।
(ब) संघाचार्य ।
दो शुक्लध्यानी भवघट से तिर जाते हैं / दो शुक्लध्यानों का स्वामी तीर्थकर का वातावरण वाला होता है ।
(अ) योगी वैराग्यवान था ।
(ब) उसका वातावरण चार धर्मध्यानों वाला भी बन सकता है ।
(471)
पंच परमेष्ठी आराधन स्वसंयम में सहायक बनकर एक देश व्रती बनाता और गृहस्थ (श्रावक) को भी उच्च बनाता है
(ब) भवघट से तिरने वाला सल्लेखना तत्पर और पंचमगति साधक बनता है ।
(अ) गुणस्थानोन्नति जंबूद्वीप में दो धर्मध्यानों और सप्त तत्त्व चिंतन से प्रारंभ होती हैं।
(ब) अष्टकर्मों को संवर द्वारा रोककर भी चतुर्गति भ्रमण क्रमशः रोका जा सकता है ।
(अ) जाप जपने का संकल्प भी वैराग्य को दो धर्मध्यानों में दृढ़ता लाकर वीतरागपथ से जोड़ता है।
(ब) वातावरण निश्चय-व्यवहारी (अरहंत सिद्धमय) हो जाता है।
(474) (अ) अरहंत और सिद्धपद की प्राप्ति स्वसंयम से ही संभव होती है। (ब) तीन धर्मध्यानों से भवघट तिरने की यात्रा प्रारंभ होती है ।
(475) - (अ) षट् आवश्यक ही चार अनुयोगी चतुर्विध संघ को संचालित रखते हैं। (ब) तब प्रथम शुक्लध्यान का वातावरण सहज बन जाता है ।
(477) - (अ) दो धर्मध्यान दाईद्वीप में दो शुक्लध्यानों तक वातावरण ले जाते हैं।
(ब) भवघट से तिरने गुणस्थानोन्नति करता त्यागी पुरुषार्थ बढ़ाकर तीन धर्मध्यानों के साथ आत्मस्थ होता है । (478)- (अ) संघ और चतुर्विध संघाचार्य पंच परमेष्ठी आराधक होते हैं।
(473)
(ब) चतुराधन का वातावरण बना ।
(अ) अष्टान्हिका व्रती भवघट से तिरने दो धर्मध्यानों की शरण रखता है।
(ब) गृह त्यागी श्रावक भी श्रमण बनकर संघाचार्य की शरण ले लेते हैं ।
(479) (अ) चतुर्विध संघ में त्यागी भी रहते हैं।
(ब) वातावरण तीन धर्मध्यानों का है ।
(480) - (अ) पंचम गति की साधना आरंभी गृहस्थ भी आत्मस्थता से कर सकता है।
(ब) महामत्स्य जैसा संहनन वैराग्य के लिए निश्चय - व्यवहार धर्म धरातल पर षट् द्रव्यों के श्रद्धान से आता है । (481) (अ) त्यागी दो धर्मध्यानों के साथ वैराग्य धारण करता पंच परमेष्ठी की आराधना करता है।
(ब) वैयाव्रत्य का झूला भी चार गति का भ्रमण रोकने में सहायक होता है ।
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