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________________ (429) (अ) तपस्वी सप्त तत्त्व चिंतन करता । (ब) हरिण युगल, शांतिनाथ का लांछन । (अ) दो धर्मध्यान पंच परमेष्ठी आराधन के वैराग्यमय वातावरण में रत्नत्रय का पालन और गुणस्थानोन्नति (ब) मगर पुष्पदंत और मीन अरहनाथ के लांछन। (अ) पंच परमेष्ठी आराधन सहित वैराग्य में निश्चय-व्यवहार का वातावरण और गुणस्थानोन्नति से दो शुक्लध्यान (ब) मगर (पुष्पदंत) । (432) (अ) तपस्वी का वैराग्य और पंच परमेष्ठी आराधन। (ब) मगर (पुष्पदंत का लांछन)। (अ) सप्त तत्त्व चिंतन करता वैराग्यमय निश्चय-व्यवहार वातावरण और गुणस्थानोन्नति। (ब) मगर नौवें तीर्थकर का लांछन। (अ)पंच परमेष्ठी चिंतन करता वैराग्यमय वातावरण और रत्नत्रय पालन सहित गुणस्थानोन्नति। (ब)मगर और मीन (अ) दो धर्मध्यान पंच परमेष्ठी आराधन के वैराग्यमय वातावरण में रत्नत्रय साधना और गुणस्थानोन्नति (ब) मगर पुष्पदंत और मीन अरहनाथ के लांछन। (अ) तपस्वी का वैराग्यमय वातावरण और पंच परमेष्ठी आराधन। (ब) मगर और मीन । (437) (अ) अस्पष्ट । (ब) मगर पुष्पदंत और मीन अरहनाथ के लांछन। (438) अस्पष्ट । वैराग्यमय संघ तपस्वियों का और चार शुक्लध्यान । (अ) जिनध्वजा और कलश | (ब) तपस्वी का नदी किनारे वैराग्य धारण और षट द्रव्य श्रध्दान। (441) (अ) भवघट से तिराने वाले दो शुक्लध्यान (ब) जिनध्वजा। (442) (ओसंघाचार्य (ब) क्षत्री त्यागी ने ऐलकत्व धारण करके वैराग्य स्वीकारा और श्रमण बना । 43) (अ) भवघट से तिरने वाले दो शुक्लध्यान हैं। (ब) जिनध्वजा। (444) (अ) त्यागी का दो शुक्लध्यानी लक्ष्य और वैराग्य षट् द्रव्य श्रद्धान वाला था। (ब) तीन धर्मध्यानों का वातावरण (उसका मूल) था । 73 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004058
Book TitleSaindhav Puralipime Dishabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSneh Rani Jain
PublisherInt Digambar Jain Sanskrutik Parishad
Publication Year2003
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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