SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (410) (अ) वह निश्चय-व्यवहार धर्मी निकट भव्य तपस्वी है । (ब) साधक तीन धर्मध्यान वाले वातावरण में है। (411) (अ) सल्लेखना धारक आरंभी गृहस्थ ने वैराग्य धारण करके षट् द्रव्य चिंतन किया । (ब) तपस्वी आत्मस्थ ऐलक है/अथवा आर्यिका है। (412) (अ) समवशरणी स (ब) वीतरागी तपस्वी स्वर्ग में दो धर्मध्यानी देव हुआ। (413) (अ) संघाचार्य । (ब) आत्मकेन्द्रता, ध्यान । (414) (अ) एकदेश स्वसंयमी सप्त तत्व चिंतक था । (ब) वह निकट भव्य था। (अ) छत्रधारी राजा ने केवली भगवान की शरण लेने के लिए वैराग्यमय वातावरण को पंच परमेष्ठीमय किया । (ब) पुरुषार्थी के रत्नत्रय से वैराग्य बुद्धि पाकर वातावरण चतुर्गति नाशक होता है। (416) (अ) अष्ट कर्मों को हटाने के लिए पुरुषार्थी वैराग्य को जंबूद्वीप में बनाया । (ब) अस्पष्ट । (अ) पंचमगति रत्नत्रय से ही संभव है। (ब) सिद्धत्व । लोकपूरणी समुद्घात दंड, प्रतर, कपाट, लोकपूरन करता और उसी विपरीत कम में वापिस होता है । (419) (अ) सल्लेखी का चतुराधन और वैराग्य पंच परमेष्ठी आराधना सहित है। (422) (423) (424) (ब) दूसरे शुक्लध्यान का वातावरण । जंबूद्वीप में दो शुक्लध्यान और केवलज्ञान । (अ) जम्बूद्वीप में त्रिगुप्ति और पंच परमेष्ठी आराधन (ब) अस्पष्ट । (अ) जंबूद्वीप में पुरुषार्थी का पंच परमेष्ठी श्रद्धान । (ब) अस्पष्ट । अस्पष्ट । (अ) लोकपूरणी का चतुराधन और रत्नत्रय धारण । (ब) अस्पष्ट । अस्पष्ट । (अ) अस्पष्ट । (ब) जंबूद्वीप में तीर्थकर द्वारा चतुर्गति नाशन । अ) चार शुक्लध्यानी वातावरण (ब) दो योगी। (426) (427) (428) 72 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004058
Book TitleSaindhav Puralipime Dishabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSneh Rani Jain
PublisherInt Digambar Jain Sanskrutik Parishad
Publication Year2003
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy