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(368)
(अ) पंच परमेष्ठी की शरण में पुरुषार्थी सल्लेखी ने अरहंत सिद्ध जपते हुए जीवन पूर्ण किया और निकट भव्यत्व पाया (ब) दो शुक्ल ध्यानों वाला वह (केवली) का वातावरण ही रहा है ।
(अ) सप्त तत्व चिंतन युगल श्रृंगों पर वैराग्य तप कराता है। अथवा सप्त तत्व चिंतन से युगल शिखरों (सिद्ध क्षेत्र मांगीतुंगी) पर वैराग्य प्राप्त किया गया।
(ब) निकट भव्य ने तीन धर्मध्यानों से यात्रा प्रारंभ कर सिद्धत्व पाया ।
(369)
(370)
(अ) अस्पष्ट ।
(ब) तीन धर्मध्यानों की प्राप्ति का वातावरण ।
(371) (अ) निकट भव्य ने पंचपरमेष्ठी आराधना तपस्वी की तरह वैराग्य प्राप्त करके और केवली के पादमूल में जिनशासन
की शरण साधना करते हुए पूर्ण की ।
(ब) तीन धर्मध्यानों की भूमिका से ही सही वातावरण की प्राप्ति हुई ।
(372) (अ) अस्पष्ट ।
(ब) तीसरे
शुक्लध्यान वाले वातावरण में वह निकट भव्य सल्लेखी था ।
(373)
(अ) दोनों बंधुओं (कुलभूषण, देशभूषण ) को वैराग्य उत्पन्न हुआ और दोनों ने चारों कषायें त्यागकर जंबूद्वीप में श्री अरहंत की शरण ली ।
(374)
(375)
(376)
(377)
(378)
(ब) तीन धर्मध्यानी वातावरण था । अथवा तीन शुक्लध्यानी केवली बने ।
(अ) उसने एकदेश स्वसंयम धारण कर अपनी इच्छाओं का निरोध किया ।
(ब) वह वातावरण ही तीन धर्मध्यानों वाले श्रावक का था ।
(अ) अस्पष्ट ।
(ब) वह तीन धर्म ध्यानियों का वातावरण था ।
(अ) वैराग्यमय तप वाला वह युगल श्रंगों पर (मांगीतुंगी) सप्त तत्त्व किया । (ब) वह तीन धर्मध्यानी वातावरण था ।
(अ) चार घातिया कर्मों के संसार चक्र से उवरने का संकल्प लिया ।
(ब) चार तपों से साधक ने आत्मस्थता पायी ।
(अ) निकट भव्य ने पंचमगति हेतु चतुराधन किया ।
(ब) वातावरण दूसरे शुक्लध्यान वाला था ।
जंबूद्वीप में वैराग्य के वातावरण में साधक सप्त तत्व चिंतन करते हैं ।
(379)
(380) पुरुषार्थी रत्नत्रय ।
(381)
(अ) सल्लेखी ने पंचमगति प्राप्त कर अरहंत पद भी पाया ।
(ब) तीन धर्मध्यानी वातावरण था ।
(382) रत्नत्रयी साधक को तीसरा शुक्लध्यान प्राप्त हुआ, वह सयोग केवली बने)
(383)
गृहस्थ का वही गृह अंतर्मुखी होने से आत्मा तक पहुंचने का साधन बना ।
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