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(ब) तीन धर्मध्यानी वातावरण से पुरुषार्थी स्वसंयमी तपस्वी ने अरहंत पद तक आत्मोन्नति की । (322) (अ) पांचसूनारत आरंभी गृहस्थ ने पुरुषार्थ बढ़ाते हुए चार अनुयोगी निश्चय-व्यवहार धर्मी आचार्य की शरण ली और
सप्त व्यसनों को त्यागकर सप्त तत्व चिंतन करने लगा। (323) रत्नत्रयी सुरवासित तपस्वी ने स्वयं को पुरुषार्थी रत्नत्रय से संयमित करके चार अनुयोगी निश्चय-व्यवहार धर्म की
शरण लेकर पंचमगति प्राप्ति हेतु उद्यम किया। (324) (अ) दो युगल बंधुओं ने तपस्वी बनकर केवलत्व प्राप्ति हेतु इच्छा निरोध किया ।
(ब) दूसरे शुक्लध्यान की प्राप्ति हेतु वातावरण में तपस्वी ने लोकपूरणी सल्लेखना से अरहंत पद पाया । (325) (अ) कल्पवृक्ष/साधना वृक्ष ।
(ब) पंचाचार पालन करते उस रत्नत्रयी साधक की तपस्या साधक ने पंच परमेष्ठी आराधना से की । (326) (अ) भवघट से तिरने के लिए दो धर्मध्यानों वाले भी सल्लेखना का पुरुषार्थ करते हुए दूसरे शुक्लध्यान तक पहुंच
जाते हैं और चतुराधन करते हैं ।
(ब) कल्पवृक्ष / साधना वृक्ष। (327) (अ) कल्पवृक्ष/साधना वृक्ष ।
(ब) अदम्य पुरुषार्थ करके योगी साधक ने अर्धचक्री की स्थिति से भी उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी में अपनी अंतहीन भटकान
को पंच परमेष्ठी सुमिरन से अंत किया । (328) (अ) अस्पष्ट। (ब) कल्पवृक्ष । (329) (अ) / (ब) अस्पष्ट। (330). (अ) अस्पष्ट। (ब) कल्पवृक्ष । (331) (अ) कल्पवृक्ष।
(ब) समवशरण में शिखर तीर्थ पर अरहंत सिद्ध ध्याते दूसरे शुक्लध्यानी संघों में अलग-अलग रहते हैं । (332) (अ) समवशरण में शिखर तीर्थ पर महाव्रती साधक गुणस्थानोन्नति करते हैं।
(ब) कल्पवृक्ष । (333) अस्पष्ट। (334) (अ) मगर, नौवें तीर्थकर का लांछन।
(ब) आत्मस्थ चतुराधक साधक जिनशासन के चरणों में अदम्य पुरुषार्थ से पहुंचा और महामत्स्य जैसा स्वसंयम पुरुषार्थ
उठाकर चारों गतियों को छेदने वाले संघ की शरण में वीतरागी तप करने लगा। (335) (अ) पुष्पदंत का लांछन, मगर। (ब) अस्पष्ट। (336) (अ) पुष्पदंत का लांछन, मगर।
(ब) अस्पष्ट। (337) (अ) पुष्पदंत प्रभु का लांछन मगर और अरहनाथ की मछली/कर्मफल चेतना ।
(ब) पंचम गति के लिए वीतराग तपस्या करते हुए षट् द्रव्यों का ध्यान करना ढाई द्वीप में वैयावृत्ति दिलाता है।
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