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पुरालिपि पाठन
पुरासीलों में अंकित जीवन संबंधी चित्र इडियोग्राम्स कहलाते हैं क्योंकि इन्हें देखते ही कल्पना उठती है अर्थात् इनसे जीवन के उपक्रम का कुछ संदेश मिलता है जिसमें पात्र के साथ क्या संभावित घटा इसका बोध होता है । प्रत्येक चित्र ही ज्ञान देते हुए अति विशेष घटनाऐं बतलाता है अर्थात् यहाँ आरंभ और अंत को देखकर स्वात्मोन्नति की ओर ध्यान देते हुए जीवन के कार्यों से लक्ष्य प्राप्ति करना यही दिशा बोध का ध्येय रहा है । अनेक उपलब्ध केटालॉगों में सीलों को जिस क्रम में प्रस्तुत किया गया है उन्हें उसी क्रम में उनकी लिपि हेतु पढ़ा गया है। जिसका आधार लेखिका द्वारा दी गई संकेत सूची है । सर्व प्रथम इसमें हड़प्पा के चित्रों को वर्णित किया गया है । कुछ सैंधव पुरा लिपि विशेषज्ञों ने इसे रेबस पध्दति से पढ़ने का संकेत किया है जो अब तक किए गए प्रयासों में उचित तो लगता है किंतु निम्नांकित कारणों से चूक रह गई है।
1.
कुंजी हाथ न लगने से वे सही संदर्भ उपयोग करने में चूक गए। उनका सारा ध्यान संकेतों को या तो ऋग्वेद की ऋचाओं से सामंजस्य बैठाने का रहा आया या फिर माहेश्वर सूत्र अथवा अनुष्टुप छंद और गायत्री मंत्र से
।
2. लिपि पढ़ने के उद्देश्य से किया गया उद्यम संकेत लिपि का अर्थ समझने से हटाकर सारा प्रयास नई भाषा ? की खोज में लगा दिया गया।
3. ब्राह्मी के साथ स्वर साम्य बैठाने के प्रयास में भटककर पूरी शताब्दी लगाकर भी लिपि संकेतों की ओर गहन दृष्टि नही डाली गई।
4, लिपि पाठन संबंधी संकेत कतिपय पुरा विशेषज्ञों से पाकर भी उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया।
5. भारतीय प्राच्य संस्कृति में भी सचाई से अज्ञात कारणों वश नहीं झांका गया ।
6. पुरालिपि विशेषज्ञों की प्राच्य जैन साहित्य से अनभिज्ञता और जैनधर्म के प्रति पूर्वाग्रही दृष्टि भी बहुत बड़ा कारण हैं।
वह पूर्वाग्रह सत्य का दर्शन भी नहीं करना चाहकर भारत के इतिहास को काल्पनिक हिंदुत्व के रंग में ही दिखलाना चाहता तो है किंतु प्रमाण उनका साथ नहीं देते हैं। तब बहुसंख्यक हिंदुत्व प्रभावी उठे हाथ स्वयमेव प्रमाणों के अभाव में ढलक जाते हैं।
7.
8. सैंधव संस्कृति को कदाचित हिंदू संस्कृति मान लेने पर भी धर्म के धरातल पर उसकी मान्यता संबंधी कोई भी संदर्भ उन पुरालिपि संकेतों में दिखलाई नहीं देते जबकि जिनधर्मी चारों अनुयोगों का दर्शन हमें उसमें सर्वत्र सहज दिखता है।
जिन पूर्वलिखित डायरियों, रोजनामचों, संदर्भों के आधार पर अंग्रेजों ने इतिहास रचा उन्हें भी आज के जैनेतर विव्दानों की भाति भारत की मूल संस्कृति से परिचय नहीं था इसीलिए आसपास बिखरे प्रमाणों के होते हुए भी उन्हें अनदेखा कर दिया गया और इसी कारण अति सूक्ष्म विश्लेषण व्दारा बनाई गई संकेत सूचियों मे भी वे कहीं कहीं चूक गए।
हमने उन सूचियों को नए सिरे से पढ़कर सर्वप्रथम यहाँ हड़प्पा के चित्रों को वर्णित करने हेतु श्री माधव स्वरूप वत्स के "एक्सकेवेशन्स एट हरप्पा भाग -2 / 11 से लेख सं. LXXXV / (85) में अंकित अभिलेखों को अभिव्यक्त किया है जो पृष्ठ 84 तक जाते हैं ।:
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