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________________ * =key+D (75) रत्नत्रयी तपस्वी का पंचाचारी रत्नत्रयी उद्यम संध में ही संभव। (76) पंचमगति के साधन चार शुक्लध्यान और अरहंत के तीसरा शुक्लध्यान। (77) चतुर्गति नाशने वाली, पंचमगति वाली पुरुषार्थी सल्लेखना। (78) चार आराधन द्वारा पंचमगति का तप करने वाले को बाह्य उपसर्गी बाधाएँ। (79) रत्नत्रय की प्राप्ति के लिए चारों कषायों का त्याग। (80) वैय्यावृत्ति का झूला चतुराधक को हर कालार्द्ध में। (81) तपस्वी का निश्चय व्यवहार धर्मी तीर्थकर प्रकृति का उद्यम। (82) तपस्वी की निश्चय व्यवहार धर्मी सल्लेखना । (83) तपस्वी को सल्लेखना में बंधनों की बेड़ी । (84) तपस्वी की पुरुषार्थी सल्लेखना में तीनधर्म ध्यान। (85) तपस्वी के इहभव में तीर्थंकर प्रकृति का पुण्योदय । (86) रत्नत्रयधारी तपस्वी ने तद्भवी मोक्ष हेतु निश्चय व्यवहार धर्मी महाव्रत धारा । Xuv=X+/\++II+ AAI+A+ T:.;: J= U++ * = ++ 39-4+T+0 Ay: +1+0 (87) तपस्वी संघस्थ उद्यमी है। (88) तपस्वी संघ में सल्लेखनाधार चर्या अपनाता है। Do= +4+009 P-R+a+/ SN= *+w++C KAR -T++8 my =+ll+Y+8 ags *... (89) तपस्वी अष्टापद जैसा अपरास्त होने वाला अर्द्धचकी है। (90) तपस्वी चार धर्मध्यानी रत्नत्रयी पुरुषार्थी अर्द्धचकी है। (91) त्रिगुप्तिधारी तपस्वी पुरुषार्थी है। (92) प्रतिमा पुरुषार्थी तपस्वी दूसरे शुक्लध्यान हेतु उद्यमी था। (93) प्रतिमा पुरुषार्थी तपस्वी पुरुषार्थी था । (94) पंचमगति भावी तपस्वी निश्चय व्यवहार धर्मी. आचार्य हैं। (95) तपस्वी दो धर्मध्यानों वाला होकर भी अरहंत भक्त है। * = *+++l (96) कुमारी युगल श्रृगों पर चौथा शुक्लध्यानी तद्भवी मोक्षार्थी यशस्वी जिनध्वजा प्रभावक था। WHAM+Illegat (97) तपस्वी कांवर पर गुणस्थानोन्नति शील क्षपक को लेकर विहार में सहायता करते हैं। A (98) तपस्वी ओंकारी है। (99) तपस्वी सप्त तत्व चिंतक है। =k+m WA=2+0 (100) तपस्वी ढाईदीप में समता उद्यमी है। 47 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004058
Book TitleSaindhav Puralipime Dishabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSneh Rani Jain
PublisherInt Digambar Jain Sanskrutik Parishad
Publication Year2003
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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