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(3) पिच्छीधारी का वैराग्यमय वातावरण ।
OF +U+f (4) निश्चय व्यवहारधर्मी वीतरागी तपस्या ।
U +f (5) वीतरागी तपस्या का उत्तरोत्तर वातावरण ।
Jf+U (6) जाप वाला वीतरागी वातावरण ।
P=8+1f+U (7) अर्धचकी का जापलीन वातावरण।
Bp= 8 +U+B (8) पंचपरमेष्ठी आराधना वाला वीतरागी तपस्वी।
=+E (७) वीतरागी तपस्वी का पंचाचार।
=f++ (10) रत्नत्रयी दशधर्मी वातावरण।
FYFU (11) षट् द्रव्य चिंतक महाव्रती का गुणस्थानोन्नति का वातावरण। 884ITIHAR+AUN (12) पिधारियों का रत्नत्रयी संघमय वातावरण।
११9-94149 (13) तपस्वी का अरहंत सिद्धमय; आत्मस्थता का तीन धर्मध्यानी वातावरण। here =ll+2+0+0 (14) रत्नत्रयी पंचाचारी वातावरण।
tu= YAT-U (15) पंचमगति वाले वैय्याव्रती दिगम्बर वीतरागी तपस्वी का रत्नत्रयी वाताव (16) सल्लेखी का वातावरण, तीर्थकर प्रकृति प्रदायी, अदम्य पुरुषार्थी, तपस्वी का है। 253 M+U+9++0. (17) तपस्वी का महाव्रती वातावरण। (18) हर कालार्द्ध में शिखर जी शाश्वत तीर्थ पर आत्मस्थ साधना का वातावरण। U DAMAU (19) सल्लेखी की आत्मस्थ वीतरागी तपस्या ।
0290 (20) दो धर्मध्यानी का पुरुषार्थी वातावरण।
UEN+)+U (21) तपस्वी की सल्लेखना हेतु वातावरणी तत्परता।
MUDR+'/+U (22) रत्नत्रयी सल्लेखी का कैवल्य श्रद्धानी वातावरण ।
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(23) अदम्य पुरुषार्थ।
(24) तपस्वी का रत्नत्रय धारण।
LADO+Y 10+|
(25) तपस्वी का अणुव्रती/एकदेश व्रती होना।
(26) तपस्वी का गुणस्थानोन्नति करना। (27) तपस्वी का स्वसंयम/इच्छानिरोध । (28) तपस्वी का दो धर्मध्यानों से दो शुक्लध्यानों तक उद्यम ।
Her =DO+॥+|| For =2+2+I+
(29) सचेलक का अणुव्रती से तपस्वी बनकर चतुराधन ।
(30) तपस्वी के दो धर्मध्यान।
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