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कुछ रोचक संयुक्त संकेताक्षर
मूल संकेताक्षरों को जोड़कर कभी दो और कभी अनेकअर्थी संयुक्त संकेताक्षर बने हैं। जिन्हें पहचानने में पूर्व लिपिविदों ने कभी-कभी गंभीर त्रुटियाँ की हैं। यथा- ||' को एक नहीं दो अक्षर मानना चाहिए था (अरहंत | तथा ।' सल्लेखना) उसी प्रकार |" एक न होकर दो अक्षर हैं | + .; [19 एक नहीं दो ||+ ) हैं ; MII भी एक नहीं दो ||+III दो हैं, एक नहीं दो ॥ + ; एक नहीं तीन n+J+d हैं, ॥ एक नहीं दो + हैं J९(हिंसा नहीं पैर / पालतू पशु का पांव है जिसे सुरक्षा में दर्शाया गया है। (पूर्व संकेताक्षरों के प्रभाव अनुसार) अन्य विशेषतायें यथा(अ) कुछ अक्षर तो अनेक रूप लेकर आये हैं जैसे-खलबत्ता जिसके सामान्य अर्थ है-आरंभी गृहस्थ.UUVW
j. वातावरण, UUU: सल्लेखना की वैयावृत्ति का झूला H D . घर, [HI [IH: घर का दरवाजा H दिगम्बरत्व १pp. भवघट (). वीतरागत्व. वन UJ. चातुर्मास CC. काल / A पुरुषार्थ ) ) मन . अरहंत - १1१ : सल्लेखी #189 . दशधर्म - बारह भावना ! WIL. निश्चय-व्यवहार धर्म FP of of: सल्लेखना । || .. रत्नत्रय Y Y , चतुराधन PYE. पंचाचार "" p पंचमगति 41 अष्टकर्म XX) कालचक कि भवचक (De. गुणस्थानोन्नति AA A D APTE तपस्वी A RA.. जिनशासन र infl Dir( Om सिद्ध : पिच्छी १ . केवली १. पिच्छी धारी /गणी १९७१।। ९१9. आदिजिन
तो कुछ संधिमय अर्थ वाले हैं। यथा
(ब) चतुर्गति + xज. शिखरतीर्थ, , AA भवघट के संधि रूप : जम्बूद्वीप . निकट भव्यत्व र युगल श्रृंग . (मांगीतुंगी, उदयगिरि-खण्डगिरि/ इन्द्रगिरि-चन्द्रगिरि). रत्नत्रयी दशधर्मी वातावरण 3. अणुव्रती आरंभी ग्रहस्थ स. प्रतिमा धारी त्यागी का पुरुषार्थ ), तपस्वी का चतुर्विध संघ of0. चार अनुयोगी आचार्य का निश्चय-व्यवहारी वातावरण
. ख्याति प्राप्त तपस्वी की रत्नत्रयी लोकपूरण समुद्घात हेतु तत्परता , तद्भवी स्वयं तीर्थ . तपस्वी का महाव्रती पिच्छीधारण १d, पुरुषलिंगी का पिच्छीधारण . तीर्थकर प्रकृतिवान का शुक्लध्यानी होना , महाव्रती श्रमण की तीर्थकर प्रकृति
आदि-आदि। इन संकेताक्षरों की विस्तृत अभिव्यक्ति निम्नांकित है(स) (१) वातावरण पंचमगति का N = A+U
(2) उत्तरोत्तर वातावरण । "-40
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