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________________ कुंजी 20 12 कुंजी 17 13 4379 कुंजी 18 Jain Education International 惶 524 OGRA 184 कुंजी 19 यह किसी तीर्थंकर का लांछन नहीं किंतु एक सैंधव संयुक्ताक्षर है। वीतरागी तप चिन्ह के भीतर रखी खड़ी पिच्छी ऊपर भगवान के दो छात्रों से ढकी है। कहै Arizo US तीर्थंकर आदिनाथ के पादपीठ पर अंकित यह एक पूरा प्रशारित है जिसके इतने ही अक्षर बचे हैं शेष नई प्रशस्ति से ब्रेक चुके हैं। अर्थ अवहारी धार्मिक वातावरण । भव से पुरुषार्थी केवली ने रत्नत्रयी पुरुषार्थ बढ़ाते पंचमंगति है जो निश्चय व्यवहार धर्मी स्वसंयमी है। HPUJN BAHA यहां के स्थान पर अंकित सैंधव अक्षर, अंतहीन गठान खुलती दिखलाई है जिसे तपस्वी ने तप से खोलकर मुक्ति पाई है। For Personal & Private Use Only पुरुषार्थी स्व संयमी निश्चय पाई ऐसा भक्त उड़ता यक्ष कह www.jainelibrary.org
SR No.004058
Book TitleSaindhav Puralipime Dishabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSneh Rani Jain
PublisherInt Digambar Jain Sanskrutik Parishad
Publication Year2003
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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