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कुंजी 20
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कुंजी 17
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कुंजी 18
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कुंजी 19
यह किसी तीर्थंकर का लांछन नहीं किंतु एक सैंधव संयुक्ताक्षर है। वीतरागी तप चिन्ह
के भीतर रखी खड़ी पिच्छी ऊपर भगवान के दो छात्रों से ढकी है।
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तीर्थंकर आदिनाथ के पादपीठ पर अंकित यह एक पूरा प्रशारित है जिसके इतने ही अक्षर बचे हैं शेष नई प्रशस्ति से ब्रेक चुके हैं। अर्थ अवहारी धार्मिक वातावरण । भव से पुरुषार्थी केवली ने रत्नत्रयी पुरुषार्थ बढ़ाते पंचमंगति है जो निश्चय व्यवहार धर्मी स्वसंयमी है।
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यहां के स्थान पर अंकित सैंधव अक्षर, अंतहीन गठान खुलती दिखलाई है जिसे तपस्वी ने तप से खोलकर मुक्ति पाई है।
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पुरुषार्थी स्व संयमी निश्चय पाई ऐसा भक्त उड़ता यक्ष कह
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