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________________ 14 ( *U | तीर्थकर आदिनाथ के पादपीठ पर अंकित ये संधवाक्षर दर्शाते है कि दिगम्बरी वातावरण में निश्चय व्यवहार धर्मी अर्धचकी ने पुरुषार्थ किया। पादपीठ पूर्वअंकित प्रशस्ति के मात्र यही दो अक्षर बचे हैं शेष सब नई प्रशस्ति से ढंक चुके हैं। ये दर्शाते हैं कि अदम्य पुरुषार्थी ने अरहंत पद की गुणस्थानोन्नति की। उमरा भाला, जो किसी भी तीर्थकर का लांछन नहीं है किंतु स्वसंयम का संकेत है जिस पर आरूढ़ होकर ही जिन तपस्या करते हैं। 10 - A प्रे 16 १० यह उमरा अंकन पार्श्वनाथ के पाषाण बिंब के पैरों पर अंकित है। जो संकेत देता है कि पिच्छीधारी स्वसंयमी वीतरागी तपस्वी ने पुरुषार्थ करके सप्त तत्वचिंतन व्दारा शुध्दात्म वैभव पाया। + Do उमरा हुआ यह अंकन भी बिम्ब के पैरों पर अधूरा ही पढ़ा जा सका है। इन संकेताक्षरों से ज्ञात होता है कि रत्नत्रयधारी निकट भव्य ने चंचल मन को बांधकर तप करने हेतु क 144 ৭P$ * यह उभरा अंकन पाषाण निर्मित जिन बिम्ब के पैरों पर दिखता है जो दर्शाता है कि एक राजा ने भाटद्रव्य श्रध्दान से तपस्वी बनकर क्षयोपशमी सल्लेखना की। अंतहीन गठान को ऊँ स्मरण सहित दिगंबरत्व धारण कर घातिया चतुष्क नाशने उसने भांतिनाथ जिन की भारण ली। पु त यह उमरा अंकन विशाल पाषाण आदिनाथ बिंब के पैरों पर अंकित है किंतु सामान्य चक्षुदर्शन में दृष्ट नहीं आता। कलेंडरों के प्राचीन चित्रों में अत्यंत स्पष्ट दिखता है और जूम कैमरा भी इसे पकड़ता है। यह सैंधव लेख दर्शाता है कि शाकाहारी बनकर छत्रधारी राजा ने उपयोग को अंतर्मुखी किया। शार्दूल / जिनवाणी सुनकर उसने रत्नत्रयधारी इसी बैठे महापुरुषी बिम्ब के दर्शन किए। नवचक्र से पार उतरने उसने वैभव को त्यागकर महाव्रत की पिच्छी ग्रहण की और स्वसंयम का पुरुषार्थ उठाया। चार शुक्लध्यानों की प्राप्ति के लिए पंचपरमेष्ठी की आरा धना करते वह तीर्थराज शिखर जी पर जा विराजा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004058
Book TitleSaindhav Puralipime Dishabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSneh Rani Jain
PublisherInt Digambar Jain Sanskrutik Parishad
Publication Year2003
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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