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खेल मानते हैं । वास्तव में वह साधुओं व्दारा स्वावलोकन हेतु उपयोग किया गया सांप सीढ़ी खेल जैसा साधन था जिससे वे स्वयं के भावों की परिणीत को आंककर अपना आत्म गुणस्थान सुरक्षित करते थे वह अंकन विभिन्न गुणस्थानों की स्थिति दर्शाता भिन्न भिन्न रूपों में सैंधव लिपि में अंकित हुआ है। यह अंकन भी व्यापक रूप से चित्तौड़, करंदई मुनिगिरि, वीलकम, किलसात्तमंगलम, मेरसित्तनूर, तिरुपनकुन्डरम, पेरुमलमलै की जैन गुफाओं में शैलांकित दिखा है।
सँघव लिपि कुंजी 5
जे.एम. केनोआर ने जिस अंकन को चूम्ब स्केच नाम देकर सैंधव पुरा लिपि अंकन माना है वह भी विन्ध्यगिरि पर शैलांकित किंतु उपेक्षित दो स्थलों पर दिखलाई देता है। एक अंकन के केन्द्र में चतुर्गति और दूसरे में ॐ का आभास होता है। चूंकि ॐ को जगत की संपूर्ण श्रुत, भाषा और लिपियों का बीज माना गया है अतः इस अंकन के घुमावदार घेरों की तुलना भूवलय यंत्र जैसी प्रतीत होती है जिसके अनुसार यंत्र के जिस भी बिंदु स्थित अक्षर से उसे प्रारंभ किया जावे जैनागम के किसी न किसी संपूर्ण ग्रंथ की रचना उससे खुलती है। चंद्रगिरि की तरह विन्ध्यगिरि पर भी व्यापक लेखन पुरा लिपि में अकित देखने को मिलता है। उसके विषय में पूछे जाने पर वहाँ के कर्मचारी उसे मजदूरों की हाजिरी बतलाते हैं किंतु हमने उसमें 155 से अधिक सैंधव संकेताक्षर और चित्र देखे हैं और प्रकाशित भी किये हैं। वह तथाकथित दूम्ब स्केच जैन तपस्थली पर होने से ही जैन संदर्भित हो जाता है। सैंधव लिपि कुंजी 6
हड़प्पा और मोहन्जोदड़ो से प्राप्त सीलों में से तीन सीलें एक तीन सिर वाला पशु दिखलाती हैं। ठीक वैसा ही तीन सिरों वाले एक पशु का सुंदर बड़ा चित्रांकन विन्ध्यगिरि के शैल फर्श पर उपेक्षित अनदेखा पड़ा था । श्रमण बेलगोला की दोनों पहाड़ियां भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में हैं जो चुपचाप वहां के पुरा अवशेषों को नष्ट होते देखता रहता है ठीक खण्डनिरि उदयगिरि, गिरनार की तरह। यह तीन सिरों वाला पशु चित्रांकन जैन तीर्थ पर होने से जैन संदर्भित हो जाता है।
सैंधव लिपि कुंजी 7
सैंधव संकेताक्षरों में तीन सीलें ऊँ" को अलग अलग तीन रूपों में दर्शाती हैं जिनमें से एक सिर से लटकने वाला रूप. धवला ग्रंथ की पाण्डुलिपि में भी उपयोग हुआ है। आश्चर्य की बात है कि वही सिर से लटका रूप चंद्रगिरि के शैलफर्श पर अंकित दिखता है । उसके ही सामने पंचम गति का भी संकेताक्षर है। पंचम गति की आस्था एकमात्र जैन धर्म की मान्यता और अभिव्यक्ति है जो विश्व के किसी अन्य धर्म में दृष्ट नही है। भारतीय अन्य धर्मों में स्वस्तिक को संसार बढ़ाने वाला मांगलिक माना गया है जबकि जैन दर्शन में उसे चेतावनी मानते हुए केन्द्र की उर्ध्व गति के लक्ष्य हेतु जागृति संकेत माना है। सैंधव लिपि कुंजी 8
सैधव लिपि में पंचम गति का संकेताक्षर बहुत रूपों ने दिखाई देता है जिसमें से कई रूप विन्ध्यगिरि चंद्रगिरि पर हीं शैलांकित हैं। सैंधव लिपि पाठन के लिए वह संकेत भी एक कुंजी बन जाता है।
सैंधव लिपि कुंजी 9
सामान्य स्वस्तिक अंकन के प्रचलन को देखते हुए उसे पुरा अंकन मान लेना कठिन हो जाता है किंतु पंचम गति दर्शाता स्वस्तिक अंकन सामान्य न होने से अपनी विशेषता रखता है । यह पुरा अंकन भी विन्ध्यगिरि पर दिखने से कुंजी है। सैंधव लिपि कुंजी 10
ढाई व्दीप की जैन मान्यता वाला अंकन धाराशिव की महावीर पूर्वकालीन जैन गुफाओं के प्रांगण वाले पाषाण व्दार पर
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