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________________ प्रथम लिपि कुंजी को कदाचित पुराविज्ञों ने इसलिए ध्यान नहीं दिया क्योंकि वे लिपि अंकन उस शिला पर जिन बिम्बांकन के समीप होकर भी अलग थे। शीघ्र ही हमें दूसरी लिपि कुंजी भी मिल गई। सैंधव लिपि कुंजी 2 __ वहीं विंध्यगिरि के मंदिर प्रांगण में जे, एम, केनोअर व्दारा घोषित एक पुरा अंकन जो उन्होंने पाकिस्तान में शैलांकित पाया था अनेक स्थलों पर दिखाई दिया। समीप की पहाड़ी चंद्रगिरि पर भी यह अनेक स्थलों पर दिखा। ऐसा ही एक अंकन देवगढ़ के मंदिर नंबर 24 में एक पाषाण निर्मित मानस्तंभ के शीर्ष भाग पर जिसमें चारों दिशाओं में एक एक चित्र अंकित है, में से एक फलक पर अंकित दिखा। मानस्तंभ पर अंकित होने के कारण इसका जिन धर्म से संबंधित होना निश्चित हो गया। श्रमण बेलगोल में प्रचुरता से दिखलाई देने के कारण कटवप्र पर संपूर्ण अंकन वीतराग परम्परा से ही संबंधित होना जतला गया। तभी चंद्रगिरि पर इसी संकेत को चरण, चकरी और सल्लेखनारत तपस्वी के सैंधव अंकन के साथ में भी देखा जो चतुर्दिक त्रिआवति का संकेत पहचाना गया है। यह अंकन मेवाड़ के चित्तौड़ तथा दक्षिण भारत में करंदई मुनिगिरि में, तिरुपनमूर में, मदुरै के समीप तिरुवनकुंडम तथा पेरुमलमलै में जैन गुफाओं में भी अंकित दिखा है। __ सैंधव लिपि कुंजी 3 कुंजी 2 से ही तीसरी लिपि कुंजी का सूत्र मिला जो चकरी के रूप में सैंधव लिपि में बार बार दिखाई देता है। चरणों के साथ अंकित होने से इसे जैन प्रतीक से अन्य नहीं कहा जा सकता। पुरा अंकित सारे चरण सिध्दगति के द्योतक हैं और वे सारे ही निर्वाण क्षेत्रों में अंकित हैं पूजित हैं। नए निर्मित चरण कभी कभी भ्रम पैदा कर देते हैं क्योंकि वे तप दर्शाते हैं। चंद्रगिरि पर चरणों के साथ दृष्ट चकरी तेरहवें गुणस्थानी सयोग केवली के समुदघात के लोकपूरण की प्रतीक ही होना संभव लगी। सैंधवं लिपि में चकरी को लोकपूरण के संदर्भ में पढ़ना सार्थक लगा । सैंधव लिपि कुंजी 4 चंद्रगिरि पर ही एक अन्य स्थल पर चरणों के साथ दिगम्बरत्व का प्रतीक पुरुष लिंग का संकेत अंकित दिखा । वहीं साथ में एक अकेला चरण, सेवक का भी अंकित दिखता है। चूंकि यह संकेताक्षर सैंधव लिपि में प्रचुरता में उपयोग किया गया है और विन्ध्यगिरि तथा चंद्रगिरि दोनों पर भी शैलांकित है अतः इसे भी कुंजी रूप में स्वीकार किया गया। सर्वेक्षण के दौरान यह संकेताक्षर गिरनार की चढ़ाई में प्रचुर संख्या में दिखा है जो उस तीर्थक्षेत्र को सैंधव युगीन श्रमण तप क्षेत्र होने की घोषणा करता है। उस क्षेत्र के पुरा तत्त्व को गुजरात सरकार की अज्ञानता तथा कौटिल्य के कारण पुरातत्व विभाग ने पंडों के रूप में वहाँ असामाजिक और अपराधी तत्वों को स्थापित कराकर वहाँ के पुरावैभव को बुरी तरह नष्ट कराया है। जैनों से उनका वह तीर्थक्षेत्र छीनकर इतिहास को भरमाने का प्रयास आराजक पद्यति से करने की कुटिल चाल तो चली ही है जिसमें भारतीय पुरातत्व विभाग की सहभागिता भी स्पष्ट दृष्ट है किंतु सैंधव पुरानिधि को इस प्रकार की घोर उपेक्षा व्दारा नष्ट कराकर उन सभी संबंधित संस्थाओं ने विश्व की अनमोल प्राचीनतम पुरा धरोहर को घोर क्षति पहुंचाई है जिसकी भरपाई कर सकना बेहद कठिन है। यह अंकन अत्यंत स्पष्ट कलिंग की खारवेल जैन गुफा के नैसर्गिक भाग की छत पर भी अंकित है जो उसके जिन संदर्भित ही होने का प्रमाण है। सैंधव लिपि कुंजी 5 चंद्रगिरि तथा विन्ध्यगिरि दोनों ही पहाड़ियों पर एक और अंकन गुणस्थानोन्नति का भी दिखलाई देता है जिसे लोग मात्र 181 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004058
Book TitleSaindhav Puralipime Dishabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSneh Rani Jain
PublisherInt Digambar Jain Sanskrutik Parishad
Publication Year2003
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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